शुक्रवार, 18 मई 2018

जनजीवन
मुर्गे की बांग और शरीर घड़ी
डॉ. डी. बालसुब्रमण्यन
रिकाड्र्स बताते है कि मुर्गे अलसुबह बांग देने का काम सिंधु घाटी सभ्यता के समय से करते आ रहे है ।
शहरों में ज्यादातर लोग रात को सोते समय रोशनी से बचने के लिए पर्दे लगाकर सोते है और सुबह अलार्म बजने पर जगाते है ।
शहरों में हमें सुबह होने की सूचना देने के लिए आस-पास बहुत ही थोड़े पर्यावरणीय संंकेत होते है । लेकिन गांवोंमें लोगों को जगाने का काम मुर्गेंा की बांग करती है । रिकॉड्र्स से पता चला है कि ऐसा सिंधु घाटी सभ्यता (३५०० ई.पू.) से होता आ रहा है । (मज़ेदार बात है कि मुर्गा के लिए अंग्रेजी शब्द कॉक दरअसल कॉकरल का छोटा रुप है । जब कॉकरल बाड़े में किसी समूह का हिस्सा होता है तो इसे रुस्टर कहते है । रुस्ट शब्द स्थायी बसे हुए समूह के लिए प्रयुक्त होता है ।) आम तौर पर हम मुर्गा शब्द का इस्तेमाल करते है जबकि वैज्ञानिक रुस्टर शब्द का ।
मुर्गा बांग क्यो देता है इस पर कई शोध हुए है । मुर्गे की बांग को तमिल में `कुकड़ कू' अंग्रेजी में `कॉक ए डूडल-डू' और जापानी में `को-की- कोक- को' कहा जाता है ।
कुछ पक्षी वैज्ञानिकों ने इस पर अध्ययन किया है कि मुर्गे सुबह-सुबह बांग क्यों देते है । हालांकि चर्चा तो कई सिद्धांतों पर हुई है, लेकिन इसका सही जवाब है कि यह मुर्गे की जैविक घड़ी (पासर्केडियन रिदम) के कारण होता है । यह बात जापान के नागोया विश्वविद्यालय की लैबोरेटरी ऑफ एनिमल फिज़ियोलॉजी (जंतु कार्यिकी प्रयोगशाला) के वैज्ञानिक डॉ. तुसुयोशी शिमूरा और उनके समूह ने दर्शाई है ।
उन्होने विभिन्न परिस्थितियोंमें मुर्गे की बांग को रिकार्ड किया । सबसे पहले उन्होने मुर्गोंा को १२ घंटे पूर्व प्रकाश और १२ घंटे मंद प्रकाश की परिस्थिति में रखा और इसके बाद लगातार मंद प्रकाश की स्थिति मेंरखा । पहली परिस्थिति में मुर्गेंा ने सूर्योदय के लगभग २ घंटे पहले (यानी उषाकाल में) ही बांग देना शुरु कर दिया । लेकिन दूसरी परिस्थिति (लगातार मंद प्रकाश) में वे पक-पक करते रहे, और इसका चक्र भी २४ घंटे का था । पर यह पक-पक जल्द ही बंद भी हो गई । इसी प्रकार से शोधकर्ताआें ने जब टार्च का कार की हैड लाइट की मदद से तेज़रोशनी डाली तो मुर्गे ने बांग तो दी लेकिन बहुत ही धीमी और संक्षिप्त्, और वह भी जल्दी ही बंद हो गई ।
मुर्गा एक सामाजिक जंतु है जो समूहों में रहता है । जब समूह में से एक मुर्गा बांग देना शुरु करता है तो दूसरे मुर्गे भी बांग में बांग मिलाने लगते है हालांकि वे थोडी कमज़ोर बांग देते है और थोड़ी विलंब से । ऐसा प्रतीत होता है कि बांग देने का मतलब अपने इलाके की घोषणा करना है ताकि कोई बाहरी जीव उस इलाके मेंघुसने की ज़ुर्रत न करे । शिमुरा के दल ने इस बात का भी अध्ययन किया कि ऐसा क्यों होता है कि जब एक मुर्गा बांग देना शुरु करता है तो बाड़ के बाकी साथी भी उसका साथ देने लगते है । उन्होनेंपाया मुर्गो के बाड़े में जो सबसे पहले बांग देता है वह प्रतिष्ठा के क्रम में सबसे उपर होता है और बाकी सारे उसके अधीन होते है ।
बाड़े में जो मुर्गियां होती है वे बांग नहीं देती है । ये केवल थोड़ी पक-पक करती है और वह भी आपस में । हो सकता है कि मुर्गियों में सामाजिक व्यवस्था होती हो और वे भी कोई प्रतिष्ठा क्रम बनाती हो जैसा कि मुर्गोंा के बीच बांग देने का क्रम होता है । क्या मुर्गिंयों में भी जैविक (सर्केडियन) घड़ी अंतनिर्मित होती है ? लगता तो है कि होती है ; विशेष रुप से यह अंडाशय से अंडा निकलने (यानी अंडोत्सर्ग) और अंडा देने के दौरान काम करती है । जैसे नर मुर्गों में उषाकाल के दौरान हार्मोन का स्तर अपन चरम पर होता है, उसी तरह मुर्गियों में गोनेडोट्रापीन हार्मोन अंडोत्सर्ग के दौरान महत्वपूर्ण होता है । और जहां तक इस बात का सवाल है कि क्यों मुर्गियां केवलपक-पक करती है और मुर्गे ज़ोरदार आवाज़में बांग देते है, तो इसका संबंध शायद उनकी शरीर रचना में अंतर से है ।
जेट प्लेन की तरह जोरदार दहाड़
मुर्गे की बांग कितनी तेज़ हो सकती है ? इसका अध्ययन एक बेल्जियन समूह द्वारा किया गया है । उन्होने इस आवाज़ की तीव्रता नापने के लिए एक यंत्र का उपयोग किया तो पाया कि यह उतनी ही तीव्र होती है जितनी किसी जेट प्लेन के पास खड़े होने पर हमारे कानों तक पंहुचती है । ध्वनी की तीव्रता को डेसिबल की इकाई में मापा जाता है । बाड़े में प्रमुख मुर्गेंा की ज़ोरदार बांग की तीव्रता १४३ डेसिबल (लगभग जेट इज़न के बराबर) होती है । हां, इतनी तीव्रता तब होती है जब हम उससे एक फुट की दूरी पर हो । इतनी तीव्रता की ध्वनि हमारे कान के पर्देंा को नुकसान पहुंचा सकती है और हम बहरे भी हो सकते है । गनीमत है कि दूर जाने पर आवाज़की तीव्रता कम होती जाती है । (आम तौर पर बाड़ में मुर्गियां मुर्गोंा से एक मीटर दूरी पर रहती है।)
तुलनाके लिए देखेंकि फुसफुसाहट की तीव्रता ३० डेसिबल, मच्छर की भिनभिनाहट की तीव्रता ४० डेसिबल और व्यस्त ट्रैफिक की आवाज़की तीव्रता ८० डेसिबल होती है और किसी बच्चे की ज़ोर से रोने की आवाज़ १००-१२० डेसिबल होती है । (मेरे एक दोस्त जैकब तरु के यहां जब बेटी हुई तो उसने उसका नाम इसाबेल रखने का सोचा, लेकिन उसके जोरदार रोने की आवाज़ सुनी तो कहा इसका नाम तो डेसिबल होना चाहिए । वैसे उसका असली नाम सुसाना है ।) १३० डेसिबल से ज्यादा की आवाज़ हमारे कानों को नुकसान पहुंचा सकती है ।
इतनी तेज़ आवाज़ में बांग देने के बावजूद मुर्गा खुद बहरा क्यों नही होता ? बेल्जियम शोर्ध कार्य का सारांश करते देते हुए किम्बर्ली हिकॉक बताते है कि मुर्गे के कान की बनावट विशेष होती है । मुर्गे के बांग देने के समय शोधकर्ताआेंने उसके कानोंमें माइक्राफोन बांध दिया । उन्होनें पाया कि बांग देते समय मुर्गे के कानबंद हो जाते है । उनके कानों की एक चौथाई नली पूरी तरह बंद हो जाती है और कान के पर्देको नरम उत्तक आधा ढंक लेते है । 
वास्तव में वे खुद अपनी उंची बांग को पूरी तीव्रता से सुन नही पाते है । उनकी खोपड़ी भी इस तरह के शोर का सामना करने के लिए बनी है । अपनी नैसर्गिक अक्लमंदी के चलते मुर्गियां बांग देने वाले मुर्गे से दूर, रहती है । इस कारण वे इस शोर से प्रभावित नही होती है । और यदि उन्हें बांग का शोर सुनना भी पड़े तो बहुत जल्द ही उनके पुनजर्नन हो जाता है ।
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