शुक्रवार, 18 मई 2018

लघु कथा
अनपढ़ मजदूर
सुश्री प्रज्ञा गौतम
उस दिन बालकनी में से एक दृश्य को देखकर मेरा मन आश्चर्य मिश्रित खुशी से भर उठा । मोहल्ले वालों का शोर सुनकर मैं बालकनी में खड़ी हो गई थी । बालकनी से घर के सामने स्थित छोटा आयताकार पार्क नज़र आता है । पार्क में अब केवल चार बड़े पेड़ बचे है बाकी भाग मेंकार पार्किंग हेतु कांक्रीट हो चुकी है ।
सर्दियोंमें उन पेड़ों की छंटाई कर दी जाती है ताकि रोशनी और धूप ज्यादा मिल सके । हुआ यूं कि छंटाई करने वालों ने पेड़ों की एक तरफ ज्यादा छंटाई कर दी तो पेड़ों के दूसरी तरफ जो घर थे, उनके लोगोंने बाहर आकर लड़ाई शुरु कर दी कि पेड़ हमारे घरो पर गिर जाएंगे । 
वैसे कोई विशेष बात नहीं थी न ही पेड़ गिरने की स्थिति में थे । खैर छंटाई करने वाले दोबारा बुलाए गए । वह मजदूर लड़का लगभग २०-२२ साल का होगा । मैने देखा, उसने कुल्हाड़ी स्पर्श करने के पहले पेड़ को झुक कर नमन किया, हाथ जोड़कर माफी मांगी तत्पश्चात वह पेड़ पर छंटाई करने के लिए चढ़ा । मेरा मन श्रद्धा से भर उठा । कहां यह अनपढ़ मजदूर जो पेड़ों के प्रति इतना संवेदनशील था और कहाँये तथाकथित पढ़े लिखे लोग जो कुछ दिन पूर्व कार-पार्किंग बनवाने के लिए इन पेड़ों को काटने पर तुले थे । इसके बाद हमारे एक जागरुक पड़ौसी के प्रयास से ये पेड़ बच पाए थे ।                     ***

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