बुधवार, 15 अप्रैल 2015

हमारा भूमण्डल 
महाकाय तेल कपंनियों को खतरा
हन्नाह मेककिनॉन

अमेरिकी अर्थव्यवस्था को प्रभावित करने वाली पांच-छह महाकाय तेल (सुपरमेजर) कंपनियां 'बिग आइल' कहलाती हैं । ये दुनिया के सबसे प्रदूषित टार सेण्ड तेल (जिसमें कच्च्े तेल में बड़ी मात्रा रेती, मिट्टी व बिटुमन होता है) का व्यापार भी करती हैं जो कि साधारण कच्च्े तेल से करीब ४ गुना अधिक प्रदूषण (ग्रीन हाऊस गैस) फैलाता है । 
अमेरिका व कनाड़ा में इसके खिलाफ चल रहा जबरदस्त विरोध अब असर दिखाने लगा है जो कि हमारे भविष्य के लिए एक शुभ संकेत है । आप विज्ञान की उपेक्षा कर सकते हो, विज्ञान का विरोध कर सकते हो या ऐसी राजनीति के  समर्थक हो सकते हो जिसका विज्ञान  में विश्वास न हो, लेकिन आप विज्ञान को परिवर्तित नहीं कर सकते । 
       वर्ष २०१४ को अब तक के  सबसे गर्म वर्ष के खिताब से नवाजा गया है, परंतु यह लगातार ३८वां ऐसा वर्ष है जिसमें कि तापमान औसत से अधिक रहा है। केलिफोर्निया मानव स्मृति के सबसे बड़े अकाल-की चपेट मेें है और बढ़ती तीव्रता के  साथ 'शताब्दी में एक ही बार'' आने वाले तूफान, बाढ़ें, आगजनी, और अकाल तो जैसे चुटकुले हो गए हैं । ''बिग आइल'' (पेट्रेालियम मंे ४० प्रतिशत की हिस्सदारी) इस तथ्य को नहीं झुठला सकती कि उनके उत्पादों की वजह से भयानक जलवायु परिवर्तन हो रहा है । न ही दुनिया अब इस सत्य से मंुह मोड़ सकती हैं कि अधिकांश जीवाश्म ईध्ंान को जमीन के भीतर ही रहना चाहिए । विज्ञान तो इस मसले पर निश्चयात्मक है और दूसरी ओर निर्णय लेने वालों के पास इसे गंभीरता से लेने के उपक्रम घटते जा रहे हैं । 
पिछले वर्ष सितंबर में न्यूयार्क में ४ लाख लोेेेगांे ने इतिहास के अब तक के सबसे बड़े जलवायु मार्च में भाग लिया और विश्व के सैकड़ांे अन्य नगरो में भी हजारों-हजार लोेग ऐसे मार्च में शामिल हुए थे । पूरे उत्तरी अमेरिका के निवासियों ने ''टार सेण्ड'' की  पाइप लाइनों को रोक दिया । इस महाद्वीप में एक भी बड़ी टार सेण्ड पाइप लाइन नहीं बची थी जिसे जनविरोध का सामना न करना पड़ा हो । इस देरी से प्रदूषण पर थोड़े समय के लिए रोक लगी और जीवाश्म (फासिल्स) ईंधन से बढ़ते जोखिम पर भी लोेगों का ध्यान  गया । 
इस तरह के विरोध से न केवल जलवायु परिवर्तन और जीवाश्म ईधन के आपसी संबंधों पर स्थिति स्पष्ट हुई बल्कि कुछ हद तक तेल निकालने वाली परियोजनाएं भी दबाव में आई । अनेक देश व भूस्वामी अब इसके विरोध में खड़े हैं और जोखिम से प्रभावित वैश्विक समुदाय अब जलवायु परिवर्तन के प्रभावांे की अनदेखी नहीं करना चाहता इसीलिए यह आंदोलन     दिन प्रतिदिन जोर पकड़ता जा रहा   है ।
वर्ष २०१४ अंत में तेल की कीमतांे में आई अभूतपूर्व कमी के  पहले ही टार सेण्ड एवं उत्तरी धुव्र समुद्र (महासागर) में जीवाश्म परियोजनाएं रद्द हो गई थीं। यह महज विशाल अर्थव्यवस्था के कारण नहीं हुआ बल्कि  अत्यधिक लागत, बहुत अधिक जोखिम एवं अधिक कार्बन उत्सर्जन वाली परियोजनाओं की वजह से हुआ था । सन् २०१४ की शुरूआत में जबकि तेल की कीमत १०० डालर प्रति बैरल से अधिक थीं उस दौरान भी अनिश्चित अर्थव्यवस्था (सार्वजनिक चिंता एवं परिवहन की सीमाओंं) के चलते तीन टार सेण्ड परियोजनाएं वापस ले ली गई थीं । विश्लेषकों का कहना है कि सन् २०१४ में तेल की कीमतों में आई गिरावट से टार सेण्ड परियोजनाओं में ५९ अरब डॉलर की आवक टल गई है और इसकी वजह से आगामी तीन वर्षोंा में ६,५०,००० बैरल तेल कम निकलेगा । 
बिग आइल के लिए तो यह बुरी खबर है लेकिन जलवायु के लिए जबरदस्त खुशखबरी । ऐसे देश और क्षेत्र जो कि अपने बजट का संतुलन बनाने हेतु बिग आइल को आधार बना रहे हैं आज संघर्ष कर रहे हैं और हर किसी को यह कटु अनुभव हो रहा है कि तेल की कीमतें, अस्थिर हैं  अनिश्चित हैं एवं इनका पूर्वानुमान भी असंभव है । संकटग्रस्त संपत्तियां और बिना जले कार्बन के विचार ने भी पिछले तीन वर्षोंा में और अधिक ध्यान खींचा है । बैंक ऑफ इंग्लैंड के  गवर्नर ने काफी स्पष्ट से कहा है कि अधिकांश जीवाश्म ईंधन भंडार तो जलने लायक ही नहीं है। यही बात अंतराराष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी और विश्व बैंक जैसी संस्थाएं भी यही कह रही हैं । यह बात पर्यावरण कार्यकर्ताओं की चेतावनी का ठीक दोहराव ही    है । 
इसे लेकर मुख्यधारा की अर्थव्यवस्था की बकवाद भी बदल रही है । इस सबसे ऊपर जनशक्ति से चलित आंदोलनों जीवाश्म ईंधन से निवेश बाहर निकालने की बात कह रहे     हैं । इन आंदोलन में अरबों लोग शामिल हो रहे हैं लेकिन वे अभी भी उद्योग को पटकनी देने के लिए काफी नहीं हैं । लेकिन वे ध्यान अकर्षित करने और यह सिद्ध करने को काफी हैं कि इन परियोजनाओ से निवेश निकालना किस प्रकार नैतिक रूप से उचित है । 
हमें यह स्वीकार करना होेगा कि यह एक  धीमी प्रक्रिया है । हमारे सामने शाश्वत चुनौती यह है कि राजनीति व राजनीतिज्ञ शर्तों से और महज ६-८ साल से परे जाकर चिंतन करंे । खासकर तब जबकि इसके  मायने यह हों कि जीवाश्म ईंधन लॉबी की ओर पीठ  कर ली गई है क्योंकि वह दशकांे तक अपनी दोस्ताना राजनीति चलाने के लिए धन की वर्षा करती रहेगी । ऐसा कहा जाता है कि सभी उम्मीदें खत्म नहीं होतीं । अमेरिकी राष्ट्रपति ओबामा ने जलवायु पर कुछ प्रेरणादायी एवं साहस भरी टिप्पणियां की हैं । कीस्टोन को लेकर उनके अंतिम निर्णय की प्रतीक्षा है और उनके हालिया वक्तव्य से लग रहा है कि वह ठीक निर्णय लेगंे, यथास्थिति में परिवर्तन लाएंगे और पाइपलाइन को अस्वीकृत कर देगें । 
चीन और अमेरिका के मध्य हुआ जलवायु समझौता भी आशावादी है और इसकी वजह से वैश्विक राजनीतिक विमर्श एक अर्थपूर्ण दिशा ले रहा है। दुनियाभर के राजनीतिज्ञ अब जलवायु परिवर्तन का ताप महसूस कर रहे हैं । कनाड़ा में यह चुनाव का वर्ष है, ऐसे में राजनीतिज्ञ जो पहले विशाल टार सेण्ड अधोसंरचनाओं की वकालत करते थे, अब पीछे हट रहे  हैं । इससे साफ संदेश जा रहा है कि जलवायु परिवर्तन पर कार्यवाही न करने की राजनीतिक कीमत चुकानी पड़ सकती है ।
पुर्नचक्रित ऊर्जा ने जीवाश्म ईंधन पर रोक लगाई है । सन् २०१४ में सौर ऊर्जा में जबरदस्त इजाफा  हुआ है और अमेरिका में इस वर्ष की पहली तीन तिमाहियों में सौर ऊर्जा की क्षमता मंे असाधारण वृद्धि हुई है और वहां इस दौरान नव उत्पादित  ऊर्जा में इसका योगदान ३६ प्रतिशत था । जबकि सन् २०१२ में यह मात्र ९.६ प्रतिशत ही था । जर्मनी में जून में एक दिन देश की आधी बिजली सौर ऊर्जा से तैयार हुई जो कि अपने आप में एक रिकार्ड है । इतना ही नहीं इसकी लागत में भी लगातार कमी आ रही है और गुणवत्ता में सुधार हो रहा है। इस दिशा में अगला कदम यातायात में बिजली एवं सौर   बिजली के उपयोग से सामने आया  है । 
तेल की घटती कीमतें पुर्नचक्रण (रिन्युएबल) के लिए नया खतरा है क्योंकि जीवाश्म ईंधन पर विश्व के  अनेक देशों में अनावश्यक सब्सिडी दी जा रही है । वर्ष २०१५ के अंत में पेरिस मेंं जलवायु पर चर्चा प्रस्तावित है और वहां वैश्विक नेता इकट्ठा हांेगे और किसी नए समझौते पर पहंुचेगंे । हम सांस रोके इस बात की प्रतीक्षा नहीं कर रहे हैंकि नेता इस अवसर में शानदार ढंग से किसी समझौते पर पहंुचेगंे बल्कि हम एक बात को लेकर निश्चित हैं कि उन्हें इसकी तपन अवश्य महसूस होगी । 
हमें वर्र्ष २०१५ में इस मिथक को समाप्त कर देना चाहिए कि जीवाश्म ईंधन हमारे भविष्य के लिए अपरिहार्य है । ''बिग आइल'' को लेकर यथास्थिति नहीं बनी रह सकती क्यांेकि अब यहां हम अपने समुदायों एवं अर्थव्यवस्थाओं का निर्माण करेंगे और अपना जीवन ऐसी ऊर्जा के ईद गिर्द बिताएंगे जो सुरक्षित, विश्वसनीय एवं स्वच्छ हो । 

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