बुधवार, 15 अप्रैल 2015

प्रसंगवश
गौरेया के संरक्षण के लिए जन जागरूकता जरूरी
 श्रीराम माहेश्वरी

प्रकृति के सौंदर्य का अनुभव पक्षियों के बिना संभव नहीं है । पर्यावरण के संरक्षण के लिए जिस तरह जल, वायु और वृक्ष आवश्यक हैं, वैसे ही पारिस्थितीकीय संतुलन के लिए वन्य-प्राणियों, जलीय-जीवों तथा पक्षियों का अहम स्थान है । पक्षियों में एक छोटी सुन्दर घरेलू चिड़िया का नाम है गौरेया । इसके संरक्षण के लिए विश्व गौरया दिवस भी मनाया जाता है । 
पिछले कुछ दशकों में गौरेया सहित अनेक पक्षियों की संख्या कम होना चिंता का विषय है । यह पक्षी विश्व के कईदेशों में पाया जाता है । हमारे घर-आँगन में यह चिड़िया हर कहीं फुदकतीदिखाई देती थी । इसकी चीं-चीं-चीं की मधुर आवाज अब कम सुनाई देती है । गौरेया चिड़िया अन्य पक्षियों की तुलना में मानव समाज के सबसे नजदीक है । इसलिए इसे घरेलू चिड़िया कहा जाता है । यदि भवनों में इसे उपयुक्त स्थान नहीं मिलता है तो यह पेड़ों तथा झाड़ियों के झुरमुट में अपना घौंसला बनाती   है । इस चि़़डिया की खासियत है कि यह सर्दी और गर्मी दोनों मौसम में सदैव खुश रहती है । 
संयुक्त राष्ट्र अमेरिका में खास कीडों पर नियंत्रण के लिए आरंभ इस चिड़िया को १८५७ में पहली बार लाया गया । यह फसल के हानिकारक कीड़ों को खाने के कारण पर्यावरण मित्र चिड़िया है । बाद में इसकी प्रजाति और संख्या में वृद्धि हुई । अमेरिका में आज यह होम लैंडबर्ड है । भारत में इसकी दो उपजातियाँ मिलती हैं । नर और मादा में अंतर होता है। इसके पंख कुछ सफेद, कुछ बादामी तथा कुछ भूरे होते हैैं । इसकी चोच भूरे रंग की तथा मोटी होती है । वैसे गौरेया साल भर अंडे देती है, परन्तु ज्यादातर यह फरवरी से मई तक अण्डे देती है । इसके अंडे राख के रंग के होते हैं जिन पर भूरी चित्तियाँ होती हैं । ये धीमी आवाज में चीं-चीं करती है, मिट्टी में खेलती हैं और कई बार खूब लड़ती भी है । गौरेया की दूसरी जाति जंगली चिड़ी के नाम से जानी जाती है । भारत में यह करीब सभी स्थानों पर पाई जाती है । मादा गौरेया के गले में पीला निशान नहीं होता है । पीठ पर लाल-भूरे धब्बे होते हैं । यह चिड़िया कम घने वन क्षेत्र में विचरण करती है ।                                        

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