विशेष लेख
जल संरक्षण में तालाबों की भूमिका
शिवरतन सिंह चौहान
जल के अनेक नाम है । इन नामों में जल का नाम जीवन और अमृत होना इस बात की ओर संकेत करता है प्राणियों का जीवन धारण करना जल पर आधारित है एवं अवलम्बित है । यों कहे, कि जल प्राणियों एवं वनस्पतियों का भी प्राण है । जल के विभिन्न नाम अधोलिखित हैं, यथा :- पानी, पानीय, सलिल, नीर, कीकाल, अम्बु, आप, वारिक, वारि, तोयपय, उदक, जीवन, अम्भ, अणे, घनरस तथा अमृत ।
यदि एक पंक्ति में अमृत की व्याख्या की जाय तो कह सकते हैं कि अमृत वै आप: अर्थात अमृत को देने वाला जल ही है ।
गीता में भगवान कृष्ण कहते हैं रसो%हमप्सु-कौन्तेय । अर्थात है अर्जुन जल में रस रूप में मैं ही विराजमान हूँ, ऐसा कह कर जल की अपूर्व महिमा का श्रीकृष्ण ने बखान किया है ।
जल अपने शुद्ध स्वरूप में एक ही होता है, किन्तु अन्य भौतिक पदार्थोंा के संयोग से वह कसैला, मीठा, तीखा, खट्टा, नमकीन अथवा मटमैला आदि हो जाता है । ये विशेषण इसे अन्यान्य स्वरूप प्रदान करते हैं । इसकी रसायन जाने वाले प्रबुद्ध जन कहते हैं कि जल में दो भाग हाइड्रोजन और एक भाग प्राणवायु (ऑक्सीजन) का मिश्रण(क२ज) जल बनता है । भौतिक स्वरूपों में इसकी उपस्थिति क्रमश: तरल, ठोस और गैस रूप में विभाजित है । तरल स्वरूप इसका सहज स्वरूप पानी नाम से जाना जाता है जिसे पीने, नहाने आदि विभिन्न कार्योंा में उपयोग किया जाता है । ठोस स्वरूप में बर्फ इसका जीवन्त उदाहरण है तथा तीसरा व अन्तिम स्वरूप में वाष्प एवं बादल इसके उदाहरण हैं । जीव शरीर की संरचना में जिन पांच तत्वों का उल्लेख है, उनमें जल दूसरा प्रमुख तत्व है :-
ज्ञिति, जल, पावक, गगन, समीरा ।
पंच रचित अति अधम शरीरा ।।
प्राणान्त के बाद जब पार्थिव शरीर विनिष्ट होता है तब प्रत्येक तत्त्व जो शरीर संरचना के प्रमुखांश हैं, अपने-अपने मूल तत्त्व में विलीन हो जात हैं । चम्बल के किनारे बसे गाँव उदी में जन्मे देश के यशस्वी महाकवि स्वनाम धन्य शिशु (मूलनाम शिशुपालसिंह शिशु) इटावा के उद्गार है :-
लपटें उठ-उठ पंच फैसला अपना सुना रही हैं ।
जिसकी थी जो चीज जहाँ की उसको दिला रही हैं ।।
बूंद सिन्धु को, किरण सूर्य को, सांस पवन को सौंपी ।
शून्य-शून्य को किया हवाले, भस्म धरिण को सौंपी ।।
गोस्वामी तुलसी ने रामचरित मानस में जल संसाधन (जल स्त्रोत) इस प्रकार बताये हैं
वापी, कूप,सरित, सर, नाना ।
सलिल सुधा सम मनि सोपाना ।।
संस्कृत में विभिन्न स्त्रोतों का परस्पर मिलान करने वाली रचना में किसी विद्वान ने कितना सुंदर सुमेल किया है । रचना यद्यपि संस्कृत में है तथापि सहज व बोधगम्य है और जन-जन में प्रचलित है :-
दस कूप समा, वापी, दस वापी समोहद: ।
दस हद समा पुत्र, दस पुत्रो समो द्रुमा: ।।
(अर्थात १० कूप = १ बावड़ी, १० बावड़ी = १ तालाब, १० तालाब = १ पुत्र एवं १० पुत्र १ वृक्ष के बराबर होते हैं ।
वेद शास्त्र सब कहें बखाना ।
एक वृक्ष दस पुत्र समाना ।।
अर्थात एक वृक्ष उतनी मात्रा में जल संधारण कर सकता है जितनी मात्रा में दस पुरूषार्थी पुत्र ।
देश के तीनों ओर जलनिधि का अखंड साम्राज्य है पश्चिम में अरब सागर धुर दक्षिण में हिन्द महासागर तथा पूरब दिशा में बंगाल की खाड़ी हिलोरे ले रहे हैं, इन्हीं से देश तर-बतर होता है और उपलब्ध अनुमान के अनुसार चार हजार घन किलो मीटर जल बरसता है जो देश को अनमोल उपहार प्रकृति की ओर से है :-
जल तो जीवन के लिये होता है अनमोल ।
पर वर्षा के रूप में मिलता है बे मोल ।।
इस प्रकार हम पानी के मामले में अभी भी अमीर हैं और कतई कंगाल नहीं जैसे विश्व के अनकानेक देश है । जल व्यवस्थापन में हम फिसड्डी हैं । मौसम व ऋतुआें में वर्षाकाल तथा वर्षा ऋतु नाम से चौमासा ( लगभग १०० से १२० दिवस) है, जो समय-समय पर अखण्ड जल बरसाता रहता है ।
विगत वर्षोंा में देश सूखे का त्रास झेल रहा है और त्रास दीर्घ कालीन हो गया और भू जल का अथाह दोहन से भूमिगत जल बहुत गहरा पहुंच गया है जो करीब-करीब पहुंच से काफी दूर हो गया है, निराश होने की जरूरत नहीं है -
सहरा में सब्र अपने का दामन न छोड़िये ।
पानी की तलाश है, तो पत्थर निचोड़िये ।।
देश ने अनावृष्टि और सूखे का सामना हौसले के साथ किया है । उपरोक्त कारणों से फसलोत्पादन घटा है, पशु आहार घटा है । भूख और प्यास से परेशानी बढ़ी है । मौसम चक्र बदल गया, ग्लोबल वार्मिंग से जल की कमी हो गई । इन सब परेशानियों का एक ही निदान है, कि पानी को संरक्षित करे, पानी को पानी की तरह ना बहाये, इसे बचायें और बरबाद न करे, क्योंकि जल का कोई विकल्प नहीं है सच तो यही है, कि जीवन का मूल मंत्र जल ही है । अर्थात जल है तो जीवन है यानी जल है तो कल है अन्तत: आपने इसे बरबाद किया तो यह आपको बरबाद कर देगा । मध्यप्रदेश के गोंडवाना क्षेत्र में वीरांगना रानी दुर्गावती का काफी वर्ष पूर्व साम्राज्य था जिसने क्षेत्र की पहाड़ियो से जल को निचोड़ा और रानीताल, भंवरताल, चेरीतालऔर आधारताल नाम से तालाबों का निर्माण करवाकर और जल संरक्षण की अद्भुद मिसाल पेश की । छत्तीसगढ़ धान का कटोरा तालाबों की बदौलत है ।
भारत देश में वर्षा का औसत ७५०-१५०० मिलीमीटर है जो लगभग पूरे साल का है । देश में सर्वाधिक जलवृष्टि मिजोरम प्रान्त के स्थान मासिनराम में होती है पूर्व में यह असम के चेरापूंजी के नाम था, परन्तु न्यूनतम वर्षा अभी भी राजस्थान के जैसलमेर के नाम ही है ।
सूखे के बारे में राजस्थान में यह जनश्रुति प्रचलित है क्या आपने कभी सुनी है :-
पग पूंगल, घड़ कोटड़े वाहु बाड़मेर ।
जो ये लांघे जोधपुर ठानौ जैसलमेर ।।
अर्थात सूखा कहता है कि मेरे पग सदा पूंगल (बीकानेर) में रहते हैं, घड कोटड़े (मारवाड़) में, भुजायें सदा बाड़मेर में पानी तलाश करने पर जोधपुर में मिल सका है किन्तु जैसलमेर नगर मेरा (सखा) स्थायी ठिकाना है ।
संत और विचारक लोग सदैव इस अतुलनीय जल सम्पदा के बारे में अपने विचार प्रकट करते रहे और महत्व को प्रतिपादित करते रहे हैंं । आज से लगभग ४०० वर्ष पूर्व स्वामी समर्थ रामदास ने जिन्हें शिवाजी छत्रपति का गुरू होना बताया गया है, ने जल के बारे में यह अमर संदेश दिया था :-
जन्म स्थली सब जीव की, जीवन्ह जीव कहाय ।
आप नारायण नाम ले, जल ही जान्यो जाय ।।
अर्थ:- यह जल ही संसार के समस्त जीवों की जन्मस्थली कही जाती है । इसे ही समस्त जीवों का जीवन कहा जाता है इसलिए परमात्मा का स्वरूप आप नारायण से जाना जाता है ।
जल ही निर्मित तन ढांचा, निर्मित पुन अहर्निश जल जांचा ।
जल कर उत्पत्ति अरू विस्तारा, कहें कहाँ तक कथा अपारा ।
अर्थ :- यह शरीर (ढाँचा) जल से ही निर्मित है । इसके रक्षण हेतु रात दिन जल की आवश्यकता होती है । इस संसार की उत्पत्ति और विस्तार सब जल से ही है अत: इसकी कथा अपार है ।
तारक मारक उदक कहाये, सुखदायक बहु उदक गिनाये ।
जल विवेक जो कर ही विचार, तत्व अलौकिक लगत प्रकार ।।
अर्थ :- संसार में जल को तारक (पालनहार) कहा जाता है अर्थात जल को ही संसार का पालन हार कहा जा सकता है । इसके विपरीत उसका मारक स्वरूप (बाढ़ अथवा प्रलय) दृष्टिगोचर होता है । वैसे मुख्य रूप से सृष्टि के लिये सुखदायक है । जल के संबंध में विवेकपूर्ण विचार किया जाय तो यह निश्चित प्रतीत होता है, कि यह एक अलौकिक दिव्य तत्व है ।
भारत को ५५२ अरब घन मीटर पानी की आवश्यकता है । भारत में वर्तमान में ३००० बड़े बाँंध है जिनमें १६२.२ अरब घन मीटर पानी संग्रहित है । ९.८० अरब घन मीटर पानी जमीन से निकाला जा रहा है । सन् २०२५ में खेती के लिये २५० अरब घन मीटर गृह उपयोग व पीने के लिये २८० अरब घन मीटर व अन्य खर्चो के लिए कुल १५३० अरब घन मीटर पानी लगेगा । जमीन के ७० फीसदी हिस्से में समुद्र, झील, ग्लेशियर व पानी के स्त्रोत है । इनमें ९७ प्रतिशत पानी खारा है और ३ प्रतिशत पानी मीठा व शुद्ध है । भारत में १९५५ में ताजे पानी की उपलब्धता प्रति व्यक्ति ५२७७ घन मीटर थी, जो २००१ में यह १८२० घन मीटर रह गई जो कमी की ओर इंगित करती है ।
पिछले कुछ वर्षो में पानी के तीन उग्र रूप दिखाई दिये - पहला और सबसे खतरनाक यह है कि भूजल स्तर इना गहरा चला गया है कि ड्रील मशीने धरती की छाती में घुसकर पानी खोजती ही रह जाती है और पानी रसा तल में पहुंच गया । दूसरा रूप यह है कि कृषि का वह हिस्सा जो वर्षा जल पर आधारित है वह पानी न रूकने के कारण व्यर्थ बर्बाद हो जाता है और जो हिस्सा सिंचाई पर आधारित है उसे नदियों, नहरों और कूप एवं नलकूपों से पानी नहीं मिल पाता है । तीसरा और अंतिम रूप अत्यन्त उग्र है जो बाढ़ के व जल प्रलय के रूप में प्रतिवर्ष आता है जो सम्पदा, समृद्धि को नष्ट-भृष्ट कर तहस-नहस कर देता है । जल प्रलय को रौद्र रूप इस २०१३ में दिखा ।
महात्मा तुलसीदास द्वारा रचित बहुश्रुत चौपाई में उल्लेख है एवं तालाब की उपादेयता वर्तमान में प्रासांगिक है और तालाब विघा आज भी कसावट में खरी है -
यथा :- समिटि समिटि जल मरहि तलाबा ।
जिमि सदगुन सज्जन पहि आबा ।
मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल राजधानी नगर से सटा हुआ एक अद्वितीय तालाब है । अद्वितीय तालाब इसलिये कि आज तक दूसरा तालाब निर्मित नहीं हो सका और यह इकलौता तालाब रह गया । यह अद्वितीय तालाब धार के परमार शासक मोज ने बनवाया था और उनके अधीनस्थ गौड़ सरदार कालिया ने इसका रूपाकंन व प्रारूप तैयार किया । संभवतया यह विश्व में अनूठा व अद्वितीय बनकर वे मिसाल है ।
जल संरक्षण में तालाबों की भूमिका
शिवरतन सिंह चौहान
जल के अनेक नाम है । इन नामों में जल का नाम जीवन और अमृत होना इस बात की ओर संकेत करता है प्राणियों का जीवन धारण करना जल पर आधारित है एवं अवलम्बित है । यों कहे, कि जल प्राणियों एवं वनस्पतियों का भी प्राण है । जल के विभिन्न नाम अधोलिखित हैं, यथा :- पानी, पानीय, सलिल, नीर, कीकाल, अम्बु, आप, वारिक, वारि, तोयपय, उदक, जीवन, अम्भ, अणे, घनरस तथा अमृत ।
यदि एक पंक्ति में अमृत की व्याख्या की जाय तो कह सकते हैं कि अमृत वै आप: अर्थात अमृत को देने वाला जल ही है ।
गीता में भगवान कृष्ण कहते हैं रसो%हमप्सु-कौन्तेय । अर्थात है अर्जुन जल में रस रूप में मैं ही विराजमान हूँ, ऐसा कह कर जल की अपूर्व महिमा का श्रीकृष्ण ने बखान किया है ।
जल अपने शुद्ध स्वरूप में एक ही होता है, किन्तु अन्य भौतिक पदार्थोंा के संयोग से वह कसैला, मीठा, तीखा, खट्टा, नमकीन अथवा मटमैला आदि हो जाता है । ये विशेषण इसे अन्यान्य स्वरूप प्रदान करते हैं । इसकी रसायन जाने वाले प्रबुद्ध जन कहते हैं कि जल में दो भाग हाइड्रोजन और एक भाग प्राणवायु (ऑक्सीजन) का मिश्रण(क२ज) जल बनता है । भौतिक स्वरूपों में इसकी उपस्थिति क्रमश: तरल, ठोस और गैस रूप में विभाजित है । तरल स्वरूप इसका सहज स्वरूप पानी नाम से जाना जाता है जिसे पीने, नहाने आदि विभिन्न कार्योंा में उपयोग किया जाता है । ठोस स्वरूप में बर्फ इसका जीवन्त उदाहरण है तथा तीसरा व अन्तिम स्वरूप में वाष्प एवं बादल इसके उदाहरण हैं । जीव शरीर की संरचना में जिन पांच तत्वों का उल्लेख है, उनमें जल दूसरा प्रमुख तत्व है :-
ज्ञिति, जल, पावक, गगन, समीरा ।
पंच रचित अति अधम शरीरा ।।
प्राणान्त के बाद जब पार्थिव शरीर विनिष्ट होता है तब प्रत्येक तत्त्व जो शरीर संरचना के प्रमुखांश हैं, अपने-अपने मूल तत्त्व में विलीन हो जात हैं । चम्बल के किनारे बसे गाँव उदी में जन्मे देश के यशस्वी महाकवि स्वनाम धन्य शिशु (मूलनाम शिशुपालसिंह शिशु) इटावा के उद्गार है :-
लपटें उठ-उठ पंच फैसला अपना सुना रही हैं ।
जिसकी थी जो चीज जहाँ की उसको दिला रही हैं ।।
बूंद सिन्धु को, किरण सूर्य को, सांस पवन को सौंपी ।
शून्य-शून्य को किया हवाले, भस्म धरिण को सौंपी ।।
गोस्वामी तुलसी ने रामचरित मानस में जल संसाधन (जल स्त्रोत) इस प्रकार बताये हैं
वापी, कूप,सरित, सर, नाना ।
सलिल सुधा सम मनि सोपाना ।।
संस्कृत में विभिन्न स्त्रोतों का परस्पर मिलान करने वाली रचना में किसी विद्वान ने कितना सुंदर सुमेल किया है । रचना यद्यपि संस्कृत में है तथापि सहज व बोधगम्य है और जन-जन में प्रचलित है :-
दस कूप समा, वापी, दस वापी समोहद: ।
दस हद समा पुत्र, दस पुत्रो समो द्रुमा: ।।
(अर्थात १० कूप = १ बावड़ी, १० बावड़ी = १ तालाब, १० तालाब = १ पुत्र एवं १० पुत्र १ वृक्ष के बराबर होते हैं ।
वेद शास्त्र सब कहें बखाना ।
एक वृक्ष दस पुत्र समाना ।।
अर्थात एक वृक्ष उतनी मात्रा में जल संधारण कर सकता है जितनी मात्रा में दस पुरूषार्थी पुत्र ।
देश के तीनों ओर जलनिधि का अखंड साम्राज्य है पश्चिम में अरब सागर धुर दक्षिण में हिन्द महासागर तथा पूरब दिशा में बंगाल की खाड़ी हिलोरे ले रहे हैं, इन्हीं से देश तर-बतर होता है और उपलब्ध अनुमान के अनुसार चार हजार घन किलो मीटर जल बरसता है जो देश को अनमोल उपहार प्रकृति की ओर से है :-
जल तो जीवन के लिये होता है अनमोल ।
पर वर्षा के रूप में मिलता है बे मोल ।।
इस प्रकार हम पानी के मामले में अभी भी अमीर हैं और कतई कंगाल नहीं जैसे विश्व के अनकानेक देश है । जल व्यवस्थापन में हम फिसड्डी हैं । मौसम व ऋतुआें में वर्षाकाल तथा वर्षा ऋतु नाम से चौमासा ( लगभग १०० से १२० दिवस) है, जो समय-समय पर अखण्ड जल बरसाता रहता है ।
विगत वर्षोंा में देश सूखे का त्रास झेल रहा है और त्रास दीर्घ कालीन हो गया और भू जल का अथाह दोहन से भूमिगत जल बहुत गहरा पहुंच गया है जो करीब-करीब पहुंच से काफी दूर हो गया है, निराश होने की जरूरत नहीं है -
सहरा में सब्र अपने का दामन न छोड़िये ।
पानी की तलाश है, तो पत्थर निचोड़िये ।।
देश ने अनावृष्टि और सूखे का सामना हौसले के साथ किया है । उपरोक्त कारणों से फसलोत्पादन घटा है, पशु आहार घटा है । भूख और प्यास से परेशानी बढ़ी है । मौसम चक्र बदल गया, ग्लोबल वार्मिंग से जल की कमी हो गई । इन सब परेशानियों का एक ही निदान है, कि पानी को संरक्षित करे, पानी को पानी की तरह ना बहाये, इसे बचायें और बरबाद न करे, क्योंकि जल का कोई विकल्प नहीं है सच तो यही है, कि जीवन का मूल मंत्र जल ही है । अर्थात जल है तो जीवन है यानी जल है तो कल है अन्तत: आपने इसे बरबाद किया तो यह आपको बरबाद कर देगा । मध्यप्रदेश के गोंडवाना क्षेत्र में वीरांगना रानी दुर्गावती का काफी वर्ष पूर्व साम्राज्य था जिसने क्षेत्र की पहाड़ियो से जल को निचोड़ा और रानीताल, भंवरताल, चेरीतालऔर आधारताल नाम से तालाबों का निर्माण करवाकर और जल संरक्षण की अद्भुद मिसाल पेश की । छत्तीसगढ़ धान का कटोरा तालाबों की बदौलत है ।
भारत देश में वर्षा का औसत ७५०-१५०० मिलीमीटर है जो लगभग पूरे साल का है । देश में सर्वाधिक जलवृष्टि मिजोरम प्रान्त के स्थान मासिनराम में होती है पूर्व में यह असम के चेरापूंजी के नाम था, परन्तु न्यूनतम वर्षा अभी भी राजस्थान के जैसलमेर के नाम ही है ।
सूखे के बारे में राजस्थान में यह जनश्रुति प्रचलित है क्या आपने कभी सुनी है :-
पग पूंगल, घड़ कोटड़े वाहु बाड़मेर ।
जो ये लांघे जोधपुर ठानौ जैसलमेर ।।
अर्थात सूखा कहता है कि मेरे पग सदा पूंगल (बीकानेर) में रहते हैं, घड कोटड़े (मारवाड़) में, भुजायें सदा बाड़मेर में पानी तलाश करने पर जोधपुर में मिल सका है किन्तु जैसलमेर नगर मेरा (सखा) स्थायी ठिकाना है ।
संत और विचारक लोग सदैव इस अतुलनीय जल सम्पदा के बारे में अपने विचार प्रकट करते रहे और महत्व को प्रतिपादित करते रहे हैंं । आज से लगभग ४०० वर्ष पूर्व स्वामी समर्थ रामदास ने जिन्हें शिवाजी छत्रपति का गुरू होना बताया गया है, ने जल के बारे में यह अमर संदेश दिया था :-
जन्म स्थली सब जीव की, जीवन्ह जीव कहाय ।
आप नारायण नाम ले, जल ही जान्यो जाय ।।
अर्थ:- यह जल ही संसार के समस्त जीवों की जन्मस्थली कही जाती है । इसे ही समस्त जीवों का जीवन कहा जाता है इसलिए परमात्मा का स्वरूप आप नारायण से जाना जाता है ।
जल ही निर्मित तन ढांचा, निर्मित पुन अहर्निश जल जांचा ।
जल कर उत्पत्ति अरू विस्तारा, कहें कहाँ तक कथा अपारा ।
अर्थ :- यह शरीर (ढाँचा) जल से ही निर्मित है । इसके रक्षण हेतु रात दिन जल की आवश्यकता होती है । इस संसार की उत्पत्ति और विस्तार सब जल से ही है अत: इसकी कथा अपार है ।
तारक मारक उदक कहाये, सुखदायक बहु उदक गिनाये ।
जल विवेक जो कर ही विचार, तत्व अलौकिक लगत प्रकार ।।
अर्थ :- संसार में जल को तारक (पालनहार) कहा जाता है अर्थात जल को ही संसार का पालन हार कहा जा सकता है । इसके विपरीत उसका मारक स्वरूप (बाढ़ अथवा प्रलय) दृष्टिगोचर होता है । वैसे मुख्य रूप से सृष्टि के लिये सुखदायक है । जल के संबंध में विवेकपूर्ण विचार किया जाय तो यह निश्चित प्रतीत होता है, कि यह एक अलौकिक दिव्य तत्व है ।
भारत को ५५२ अरब घन मीटर पानी की आवश्यकता है । भारत में वर्तमान में ३००० बड़े बाँंध है जिनमें १६२.२ अरब घन मीटर पानी संग्रहित है । ९.८० अरब घन मीटर पानी जमीन से निकाला जा रहा है । सन् २०२५ में खेती के लिये २५० अरब घन मीटर गृह उपयोग व पीने के लिये २८० अरब घन मीटर व अन्य खर्चो के लिए कुल १५३० अरब घन मीटर पानी लगेगा । जमीन के ७० फीसदी हिस्से में समुद्र, झील, ग्लेशियर व पानी के स्त्रोत है । इनमें ९७ प्रतिशत पानी खारा है और ३ प्रतिशत पानी मीठा व शुद्ध है । भारत में १९५५ में ताजे पानी की उपलब्धता प्रति व्यक्ति ५२७७ घन मीटर थी, जो २००१ में यह १८२० घन मीटर रह गई जो कमी की ओर इंगित करती है ।
पिछले कुछ वर्षो में पानी के तीन उग्र रूप दिखाई दिये - पहला और सबसे खतरनाक यह है कि भूजल स्तर इना गहरा चला गया है कि ड्रील मशीने धरती की छाती में घुसकर पानी खोजती ही रह जाती है और पानी रसा तल में पहुंच गया । दूसरा रूप यह है कि कृषि का वह हिस्सा जो वर्षा जल पर आधारित है वह पानी न रूकने के कारण व्यर्थ बर्बाद हो जाता है और जो हिस्सा सिंचाई पर आधारित है उसे नदियों, नहरों और कूप एवं नलकूपों से पानी नहीं मिल पाता है । तीसरा और अंतिम रूप अत्यन्त उग्र है जो बाढ़ के व जल प्रलय के रूप में प्रतिवर्ष आता है जो सम्पदा, समृद्धि को नष्ट-भृष्ट कर तहस-नहस कर देता है । जल प्रलय को रौद्र रूप इस २०१३ में दिखा ।
महात्मा तुलसीदास द्वारा रचित बहुश्रुत चौपाई में उल्लेख है एवं तालाब की उपादेयता वर्तमान में प्रासांगिक है और तालाब विघा आज भी कसावट में खरी है -
यथा :- समिटि समिटि जल मरहि तलाबा ।
जिमि सदगुन सज्जन पहि आबा ।
मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल राजधानी नगर से सटा हुआ एक अद्वितीय तालाब है । अद्वितीय तालाब इसलिये कि आज तक दूसरा तालाब निर्मित नहीं हो सका और यह इकलौता तालाब रह गया । यह अद्वितीय तालाब धार के परमार शासक मोज ने बनवाया था और उनके अधीनस्थ गौड़ सरदार कालिया ने इसका रूपाकंन व प्रारूप तैयार किया । संभवतया यह विश्व में अनूठा व अद्वितीय बनकर वे मिसाल है ।
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