बुधवार, 15 अप्रैल 2015

सामाजिक पर्यावरण 
नशीले धूम-छल्लों का संसार
बी.एल. आच्छा
राजकुमार सिद्धार्थ प्रासाद से निकलकर उद्यान में विचरण कर रहे थे । भौतिक विलास से दूर उनके एकांतिक मन में इच्छा जागृत हई कि जनसाधारण के दुख सुख से साक्षात्कार किया जाए । उन्होंने सारथी को बुलवाया । कहा - प्रियात्मन्, साधारण जन से साक्षात्कार की इच्छा से ही आपको कष्ट दिया है । उसके लिए न रथ की अवश्यकता है न, राजसी वेशभूषा  की । जो आज्ञा - कहकर सारथी उनके साथ चल पड़े । 
लौहपथ गामिनी के साधारण यात्री प्रकोष्ठ में वे वरिजमान हुए । बोल-प्रियवर, ये साधारण से जन मुख से धूम्र को उगल रहे हैं ? आपने तो कहा था कि गाड़ियो के धुआँ वाले एंजिन भी अब बाहर कर दिये गये हैं, मगर प्रजाजन तो मुँह से धुआँ उगल रह हैं । सारथी ने कहा - युवराज, ये तम्बाकू से बनी बीड़ी से धूम्रपान कर रहे है । जो थोड़े सभ्य हैं, वे सिगरेट पीते हैं और परमसभ्य सिगार पीते   हैं ।
राजकुमार ने पूछा - यह धूम्र जब पास में बैठने मात्र से आहत कर रहा है तो पीनेवालों को न करता  होगा ? सारथी ने कहा - आप सत्य कह रहे हैं । उधर देखिए, वे निरंतर खाँस रहे हैं, श्वास से पीड़ित हैं । इसीलिए राज्य की ओर से धूम्रपान निषेध की पटि्टकाएँ लगाई गई हैं ।
राजकुमार जैसे ही यात्रिका से उतरे मुख्य मार्ग की दुकानों को निहारते हुए बोले - आत्मन्, ये ताम्बूलवाहिनियों पर बंदनवारें कैसीसजी है ? सारथी ने कहा - देव, लोकवाणी में इन्हें गुटका और विदेश वाणी में पाऊच कहते हैं । साधारण जन शाकाहारी किस्म का और मर्दाना लोग तम्बाकुयुक्त गुटके से हर घड़ी ऊर्जा प्रािप्त् के लिए बैचेन हो जाते हैं । तभी राजकुमार का ध्यान दीवारों पर गया । सारथी ने तपाक से कहा - पान गुटके के बाद लगातार पिच्च्-पिच्च् से दीवारों की संस्कृति ही बदल गई हैं । गंदगी से बदहवास होकर राजकुमार आगे बढ़ लिए । 
तब वे एक राज्य-कार्यालय में पहँुचे । द्वारपाल हथेली पर तम्बाकू मेंचूना रगड़ रहा था । घूर कर उनकी ओर देखा । फिर फट्-फट् करते हुए गुटके को अधरोष्ठ ओर दाँतों के बीच उड़ेल दिया । विलम्ब से आहत होकर सारथी ने द्वारपाल से पूछा । आँखे तरेरते हुए द्वारपाल कोने में जाकर पिच्च् कर आया । राजकुमार ने पूछा - यह क्या खा रहा है । सारथी ने कहा - देव, यह भी तम्बाकू चूर्णिका है । मँहगे पान का समाजवादी संस्करण । आम या खास आदमी इसका उपयोग आम जगह कर लेता है । अब तो यह सभी जातियों, वर्गोंा, दलों में जगह बनाकर धर्म-निरपेक्ष हो गया है । राजकुमार ने पूछा - मगर इसका लाभ क्या    है ? सारथी ने कहा - देव, लाभ-अलाभ की बात नहीं है । साधारण प्रजा से लेकर राज्यकर्मी भी इतने चक्करों में उलझे रहते हैं कि यह गुटका ही उनमें नई ऊर्जा का संचार करता रहता है । 
शरीर की टूटन के समय यह शक्ति को लौटाता है । बैर-विरोध में यारी का जोड़क है । काम न बनने की स्थिति में काम-बनावक है । राजकुमार ने मुस्कराते हुए पूछा - प्रियात्मन् । आप तो ऐसे मोहित हैं, जैसे कोई दिव्य औषधि हो । पर क्या यह स्वास्थ्यप्रद है ? सारथी ने कहा - नहीं देव, जैसे हिम, तुषार, उपल आदि जल ही के संस्करण है उसी तरह ये सभी खतरनाक तम्बाकू के ही विविध संस्करण हैं । 
राजकुमार और सारथी भीतर प्रविष्ट हुए । लिपिक महोदय हथेली में तम्बाकू-चूना रगड़ रहे थे । फिर अधिकारियों को प्रस्तुत किया । राजकुमार ने अधिकारी से पूछना चाहा, मगर उनके फू ले मुखमण्डल और पिच्च् मुद्रा को पहचानते हुए बाहर निकल आए । फिर सारथी से पूछा - यह लिपिक चूना क्यों लगा रहा   था ? सारथी ने कहा - देव, कार्यालयों में चूना लगाये बगैर काम सम्पन्न नहीं होते । 
बाहर निकलते ही राजकुमार का ध्यान वाहनों की पंक्तियों पर  गया । पूछा - इतने वाहन यहाँ क्यों खड़े हैं ? सारथी ने कहा - देव, यहाँ देश-देशांतर के खिलाड़ियों के बीच क्रिकेट हो रहा है । राजकुमार ने पूछा - इतने विशाल आयोजनों के लिए धन कैसे आता होगा ? सारथी ने कहा - कई तम्बाकू-सिगरेट उद्योग इन्हें प्रायोजित करते हैं । धूम्रदण्डिका का एक विज्ञापन देखते हुए उन्हें लग रहा था, जैसे धूम्रदण्डिका पीने वालों में ही पौरूष होता है, वर्ना ......... । 
कुछ अन्तराल विश्राम करते हुए वे एक चिकित्सालय में पहुँचे । अनेक रोगियों को विशेष प्रकोष्ठ में त्रस्त देखकर पूछा - इन्हें क्या हो गया है ? सारथी ने का - देव इन्हें कैन्सर हो गया है । कई बार तबाकू से कैन्सर हो जाता है । द्रवित राजकुमार वहाँ टिक न पाए । मार्ग में पूछा - यह रोग हमारे राज्य में ही है ? सारथी ने कहा - नहीं युवराज, विश्व के अनेक देश इस रोग से पीड़ित है । 
द्रवित-पीड़ित राजकुमार प्रासाद में लौटे । वे रात्रि पर्यन्त शयन नहीं कर पाए । राजकुमार की विषादपूर्ण मुखमुद्रा को देख के महाराज ने सारथी से विवरण प्राप्त् किया । फिर राजसभा में राजकुमार ने कहा - राजन्, यह तम्बाकू अनेक रोगों की जननी है । इस पर तत्काल रोक श्रेयस्कर होगी । महाराज ने कहा - वत्स, यह राजाज्ञा साधारण नहीं  है । इससे कोटि कोटि लक्ष मुद्रआें की राजस्व-हानि होगी । अनेक उद्योग बंद हो जाएँगे । लोग बेरोजगार हो जाएँगे । क्रिकेट के प्रायोजक नहीं मिलेंगे । निर्यात के अभाव में विदेशी मुद्रा की हानि होगी । फिर यह तो पूरे विश्व की समस्या है । 
राजकुमार व्यग्र हो गए । बोले - इतने असाध्य रोगों और करूण मृत्युआें के बाद भी तम्बाकू जीवन यात्रा की संजीवनी बनी   रहेगी ? महाराज ने शान्त स्वर में कहा - वत्स, हमने अनेक उपाय किये है । तम्बाकू निर्मित प्रत्येक उत्पाद पर यह छापना अनिवार्य कर दिया है कि तम्बाकू स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है ।
लेकिन राजकुमार के मुखमण्डल पर आश्वस्ति का भाव नहीं उभर पाया । उनकी आँखों में पिछली यात्रा के चित्र संसार को तम्बाकूमय बना रहे थे । उनकी चिन्ताआें को समझते हुए एक अमात्य ने कहा - देव, यहाँ समय-समय तम्बाकू निषेध दिवस भी मनाये जाते हैं । मगर राजकुमार की चिन्ताआें को समझते हुए सारथी ने कहा - देव, समय-समय पर उपभोक्ता संरक्षण सप्तह, ऊर्जा बचत सप्तह, यातायात सप्तह की तरह रोज ही कोई न कोई दिवस मनाता है । पर दिवस-सप्तह बीता नहीं की ढाक के तीन पात हरे हो जाते हैं । 
सारथी की कटाक्षवाणी को नरमीली करते हुए प्रधान अमात्य ने कहा - युवराज, हमने लोगों में चेतना उत्पन्न करने के लिए भाषण, निवंध आदि प्रतियोगिताएँ आयोजित करवाई हैं । अनेक नारों के लिए पुरस्कार स्थापित किये हैं । हम विज्ञापन भी देंगे । मगर सारथी तब भी चिन्तित थे, उत्तेजित भी । बोले- देव, घर-घर में दूरदर्शिनी सुन्दर आकृतियाँ जब धूम्र-छल्ले बनाती हैं, तो दर्शकों में भी नशीले रोमान की भंगिमाएँ तैरने लगती है । नशीले स्वादिष्ट चटखारे अपनी जादुई अदाआें से बहलाते हैं । जब मन में सारे तटबंध बह जाते है और ये उपाय ......। 
तभी सारथी की नजरें महाराज की भृकुटियों से टकराई । वाणी को एकाएक वल्गा मिल गई । राजकुमार की चिन्ता सघन होती जा रही थी, इस सन्नाटे ने उसे बहनतर बना दिया । कोई समाधान न निकलते न देख राजकुमार सिद्धार्थ तम्बाकूजनित दुखों से संसार को मुक्त कराने के लिए व्यग्र होकर एकान्त की ओर प्रस्थित हो गए । 

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