बुधवार, 15 अप्रैल 2015

विरासत
चेर्नोबिल : भारत के लिए सबक 
नारायण देसाई 

वरिष्ठ सर्वोदयी नेता नारायण भाई का पिछले दिनों निधन अत्यन्त दुखद घटना है । उनका यह लेख दिसम्बर १९८६ में प्रकाशित हुआ   था । तकरीबन तीन दशक बाद भी यह लेख प्रासंगिक बना हुआ है क्योंकि भारत सरकार एक बार पुन: परमाणु के कथित शांतिपूर्ण उपयोेेग से बिजली उत्पादन करने में प्राणप्रण से जुटी    है । इस बीच जापान के फूकिशिमा परमाणु संयत्र दुर्घटना भी सरकारों को अपने निर्णय पर पुर्नविचार हेतु बाध्य नहीं कर पाई  है ।
अप्रैल १९८६ में रूस के चेर्र्नोबिल में हुई भीषण परमाणु दुर्घटना ने भारत को बहुत सबक सिखाये हैं। पहला सबक तो यह सिखाया कि ''शांति के लिए'' अणु कार्यक्रम भी जनता के लिए खतरे से खाली नहीं है । दूसरा सबक यह कि हर परमाणु रिएक्टर में गफलत एवं दुर्घटना होने की संभावना बनी रहती है । तीसरा सबक यह कि ऐसी दुर्घटना होने पर विश्व भर के अणु उघोग के समर्थक एकजुट होकर जनता से उस सत्य को छिपाने का प्रयास करते हैं। चौथा सबक यह कि दुर्घटनाओं के दुष्परिणामों से बचने के लिए हमारे पास न तो पर्याप्त साधन है, न कानूनी व्यवस्था है । और शायद सबसे बड़ा सबक यह सीखने  को मिला कि इने-गिने तबकों तथा राजनैतिकों के निर्णय पर आधारित (केन्द्रीय) व्यवस्था अंतत: आम जनता को बंधक में रखने वाली जनतंत्र विरोधी तानाशाही व्यवस्था सिद्ध होती है ।
आइए हम इन सबको थोड़ा निकट से देखें ।'शांति के लिए परमाणु' यह बड़ा  भ्रामक शब्द है । वास्तव में परमाणु शक्ति पैदा करने वाले हर देश में और विशेष कर अमेरिका और रूस में शांति के लिए अणु और शस्त्रों के लिए अणु का चोली-दामन का संबंध  रहा है । यद्यपि भारत की घोषित नीति 'शांति के लिए अणु' की ही रही है। पर हमारे यहां भी परमाणु के लिए होने वाले शोध का बहुत सारा खर्च सुरक्षा खाते में पड़ता है। हमारे नेता लोग बीच-बीच में यह भी आश्वासन देते रहते हैंकि हम चाहें जिस समय अणु बम बना सकते हैं। अणु कचरे को 'रिसाइकिल' करने की प्रक्रिया ऐसी है कि जिसमें अणुबम के लिए कच्च माल तैयार हो जाता है ।
बहरहाल यहां सोचने लायक विषय तो यह है कि सिर्फ  अणुअस्त्र कार्यक्रम ही नहीं शांति के लिए अणु कार्यक्रम भी खतरे से खाली नहीं   है । रूस का यह रिएक्टर 'शांति' क्के लिए ही बना था । उसमें यह दुर्घटना हो ही गई। यह भी स्मरण रहे कि यद्यपि चेर्नोबिल दुर्घटना आज तक की दुर्घटनाओं में सबसे बड़ी थी, लेकिन यह कोई पराकाष्ठा की दुर्घटना नहीं  थी । भविष्य में इससे भी अधिक भयंकर दुर्घटनाएं हो सकती हैं। यह भी नहीं कि चेर्नोबिल की दुर्घटना इतिहास में प्रथम अणु दुर्घटना थी । दुनिया भर में आज तक छोटी-बड़ी चार हजार दुर्घटनाएं घट चुकी हैं। भारत में भी तीन सौ से अधिक बार छोटी-मोटी दुर्घटनाएं घटी हैं। अलबत्ता अणु वैज्ञानिक और राजनैतिक नेता इन्हें ''असाधारण घटना'' कह कर उसकी भीषणता को छिपाना चाहते है

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