मंगलवार, 16 जनवरी 2018

प्राणीजगत
क्या मच्छरों की प्रकृतिमें कोई भूमिका हैं ??
डॉ किशोर पंवार
यह तो सब जानते है कि तथाकथित चिकन गुनिया एक वायरस जन्य बीमारी है और ऐडींस वंश के मच्छरों के काटनेसे होती है । यह एक ऐसा मच्छर है जो साफ पानी में पैदा होता है और दिन में काटता है । अत: पानी को रुकने नही देना तथा पुरी बांह के कपड़े पहनना इससे सुरक्षा का उपाय है । पर एक बात समझ से परे है कि पिछले दिनों साफ-सफाई में नं. १ इंदौर शहर में यह बीमारी इतनी क्यों फैली ?
एक बहुत बड़ी आबादी में बीमारी फैलनेकी भयावहता ने कई लोगोंका चिंतित कर दिया । घर-घर में लोग इससे पीड़ित है । कोई आठ-दस दिन तक तकलीफ झैलता है तो कुछ लोगों का दो महीने बाद भी पुरी राहत नहीं । सभी जोड़ो के असहनीय दर्द से परेशान है । 
मनुष्य का दुश्मन नं.१ मच्छर प्रकृति में `खाओ और खा लिए जाओ'नामक प्राकृतिक भोजन श्रंखला और भोजन जाल का एक हिस्सा है । यह मछलियों, कछुआें जैसे जलीय जीवों, ड्रेगन फ्लाईस तथा चमगादड़ों का भोजन है । यह तरह-तरह के कीट भक्षी पक्षियों (सांगबर्ड और अन्य प्रवासी पक्षियों ) का भी प्रिय भोजन है । घर में रहने वाली मकड़ियां तथा छिपकलियां भी घर के अंदर रहकर इन मच्छरों का शिकार कर हमें इनके प्रकोप से कुछ हद तक छुटकारा दिलाती है ।
मच्छरों के घातक दंश से बचना हो तो साफ-सफाई के नाम पर मकड़ियों के जाले बार-बार न हटायें। मच्छरों से छुटकारा पानें के लिए एक्वेरियम एवं तालाबोंतथा कृत्रिम झरनोंके पानी में गेम्बूसिया नाम की मछलियां विशेष रुप से छोड़ी जाती है । यह मच्छरों के लार्वा को खाकर उनको पनपनें नही देती है ।
ज़ाहिर है, यदि मच्छर नहीं होंगे तो भोजन श्रंृखला के इन शिकारियों को खाना नही मिलेगा और इन जीवों पर अस्तित्व का खतरा मंडरा सकता है ।
यह नन्हा-सा शत्रु-कीट कई फसलों और जंगली फूलों का परागण भी करता है । परागण नहीं होगा तो फल नही बनेंगे । फूलों की दुनिया के सुन्दरतम फूल ऑर्किड की कुछ प्रजातियां तो अपने परागण के लिए मच्छरों पर निर्भर है । यह तो नहीं कहा जा सकता कि मच्छर नही होगें तो इनका काम नही चलेगा क्योंकि यह पौधे मात्र मच्छर पर निर्भर नहीं है ।
मच्छर गरम खून वाले जीवों (स्तनधारियों और पक्षियों) को ही काटते है । हम भी इनमें से एक है । यह भी सुननें में आता है कि मछर कुछ लोगो को ज्यादा काटते है । ऐसे लोगों की त्वचा ऐसे रसायन बनाती है जो मच्छरों को ज्यादा लुभाते है, जैसे लेक्टिक अम्ल । रक्त समूह के आधार पर भी मच्छर अपना शिकार चुनता है । `ए' और `बी' रक्त समुह के लोगों की बजाय मच्छर `ओ' रक्त समुह के लोगों को ज़्यादा काटते है । यह भी देखा गया है कि यदि कोई व्यक्ति परजीवी से संक्रमित है तो वह मच्छरों का ज़्यादा आक र्षित करने लगता है । 
मच्छर हमेशा खुन नही चुसतें। मच्छरों का खास भोजन तो पेड-पौधों की पत्तियों और फुलों का रस ही है । परंतु जब कभी मादा मच्छर को अण्डे देना होते है, तब वह हमेंकाटती है । खून में पाए जाने वाले प्रोटीन और लोह तत्व का उपयोग वह अपने अण्डों के विकास हेतु करती है । यानी खून चुसना मादा की कुदरती मजबूरी है । यदि ऐसी मादाएं खून पीने के बाद मसले जाने से बच जाती है तो लगभग तीन सप्तह तक जिंदा रहती है और इस दौरान ५ बार में लगभग १०० अण्डे देती है ।
यह तो हमने जान ही लिया है कि मादा मच्छर ही काटती है । यह अपने शिकार को उसके पसीने मेंउपस्थित कुछ विशेष रसायनों तथा कार्बन-डाई-ऑक्साईड की उपस्थिति से ढुंढती है । श्वसन में छोड़ी गई कार्बन डाई ऑक्साइड जहां ज्यादा होगी वहां मच्छरों द्वारा काटे जाने की संभावना बढ़ जाती है । अत: यदि आप हवादार जगह पर बैठे है तो मच्छरों द्वारा काटे जाने की संभावना कम होती है ।
मच्छर जब खून पीने के लिए अपनी सूंड को हमारी त्वचा मेंघुसाता है तो उस जगह वह अपनी लार भी छोड़ता है। लार में उपस्थित प्रोटीन मनुष्य के लिए एलर्जिक होते है । इसी कारण जलन होती है और काटे गये स्थान पर सूजन आ जाती है ।
वैसे इसी लार के साथ रोग जनक सूक्षम जीव भी हमारे शरीर में प्रवेश करते है । इन सूक्ष्म जीवों की एक विशेषता यह है कि इनका जीवन चक्र मात्र मच्छर के शरीर मेंया मात्र मनुष्य के शरीर मेंपूरा नही हो सकता । इन्हें जीवन चक्र की अलग-अलग अवस्थाआेंमें दोनों की जरुरत होती है । मच्छर हमें काट कर इन परजीवियों की इसी जरुरत को पूरा करता है ।
मच्छरों को खत्म तो नहीं किया जा सकता परन्तु कुछ तरीकों से इनकी संख्या को हम नियंत्रित जरुर कर सकते है । मच्छरों से बचने का सबसे बढ़िया तरीका है उन्हे अपने से दूर भगाना । रेपेलेन्ट पदार्थं ऐसा ही करते है। चाहे वह क्रॅाइल हो या लिक्विड ।
मच्छरों का दूर भगानें में कुछ पौधे भी उपयोगी पाए गए है । लहसुन, तुलसी, पुदीना, केटनीप और एक प्रकार की गुलदावदी । लहसुन का पानी में घोल बनाकर स्प्रे करने से मच्छर भाग जाते है। कपूर के तेल का स्प्रे कर सकते है । तुलसी, पुदीना, केटमींट तीनों एक ही कुल के पौधे है । उनकी पत्तीयोंमें उपस्थित वाष्पशील तेल की गंध मच्छरों को पसन्द नहीं है परन्तु हमें अच्छी लगती है । इससे वातावरण भी खुशनुमा हो जाता है । तो मच्छरों को भगाने और मच्छर-जन्य बीमारीयों से बचने के लिए यह पौधे अपने घर के आस पास बगीचे मेंव घर के अंदर भी गमलोंमें लगाकर देखें । स्वाद, सुगंध और हरियाली के साथ मच्छरों से मुफ्त में छुटकारा मिल जाएगा ।***

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