प्रदेेश चर्चा
उत्तराखण्ड : पेड़ो पर टूट रहें `पहाड़'
सुरेश भाई
चारधाम के लिए बनने वाले ऑल वेदर रोड़ के दूसरे चरण का काम शुरु हो गया है । इसमेंऋषिकेश-गंगोत्री हाईवे पर आने वाले पेड़ो का कटना शुरु हो गया है । उत्तराखण्ड सरकार ऑल वेदर रोड़ के नाम पर ४३ हजार पेड़ काट रही है । लेकिन सवाल है कि १०-१२ मीटर सड़क विस्तारीकरण के लिए २४ मीटर तक पेड़ो का कटान क्यों किया जा रहा है?
आजकल चारधाम-गंगौत्री, यमनौत्री, के दारनाथ, बद्रीनाथ मार्गो पर हजारो वन प्रजातियों के उपर पहाड़ टूटने लगे है । ऋषिकेश से आगे देव प्रयाग, श्रीनगर, रुद्रप्रयाग, अगस्तमुनी, गुप्त्काशी, फाटा, त्रिजुगीनारायण, गोचर, कर्णप्रयाग, नंदप्रयाग, चमोली, पिपलकोटी, हेंलग से बद्रीनाथ तक हजारों पेड़ो का सफाया हो गया है ।
उत्तराखण्ड सरकार का दावा है कि वे वेदर रोड़ के नाम ४३ हजार पेड़ काट रहे है । लेकिन सवाल खड़ा होता है कि १०-१२ मीटर सड़क विस्तारीकरण के लिए २४ मीटर तक पेड़ो का कटान क्यों किया जा रहा है ? और यहां नही भुलना चाहिए की एक पेड़ गिराने का अर्थ है १० अन्य पेड़ खतरे में आना इस तरह लाखों की संख्या में वन प्रजातियों का सफाया हो जाएगा ।
सड़क चौडीकरण के नाम पर देवदार के अतिरिक्त बाँझ, बुराँस, तुन, सीरस, उत्तीस, चीड़, पीपल आदि के पेड़ भी वन निगम काट रहा है जो वन निगम केवल ` वनों को काटो और बेचो ' की छवि पर खड़ा है, उससे ये आशा नहीं की जा सकती है कि वह पेड़ो को बचाने का विकल्प दे दें । यह एक तरफ तो सड़क चौड़ीकरण है और दूसरी तरफ वन निगम का कमाई का साधन एक बार फिर उछाल पर है ।
मध्य हिमालय के इस भू-भाग में विकास का यह नया प्रारुप स्थानीय पर्यावरण, पारिस्थितिकीय और जनजीवन पर भारी पड़ रहा है । सड़क निर्माण, सड़क चौड़ीकरण, बड़ी जलविद्युत परियोजनाआें व सुरंगों का निर्माण इस भूकम्प प्रभावित क्षेत्र की अस्थिरता को बढ़ा रहा है । भारी व अनियोजित निर्माण कार्यो का असर जनजीवन पर भी पड़ रहा है । इन बड़ी परियोजनाआें से भूस्खलन, भू-कटाव, बाढ़, विस्थापन आदि की समस्या लगातार बढ़ रही है ।
पर्यावरण कार्यकर्ताआें की टीम राधाभट्ट और इन पंक्तियों के लेखक ने वन कटान से प्रभावित इन धामों में प्रस्तावित लगभग ७५० किलोमीटर सड़क और इसके आसपास निवास करने वाले लोगों के बीच भ्रमण कर एक रिपोर्ट भी प्रधानमंत्री को सौंपने के लिए तैयार की है । कई स्थानोंपर सड़क चौड़ीकरण के नए इलाईमेंट करने से लोगों की आजीविका, रोजगार, जंगल समाप्त् हो रहे है ।
यह केदारनाथ मार्ग पर काकड़ गाड़ से लेकर मौजूदा सेमी-गुप्त्काशी तक के मार्ग को बदलने के लिए १० कि.मी. से अधिक सिंगोली के घने जंगलोंके बीच से नया इलाईमेंट लोहारा होकर गुप्त्काशी किया जा रहा है। इसी तरह फाटा बाजार को छोड़कर मेखंडा से खड़िया गांव से होते हुए नये रोड़ का निर्माण किया जाना है । फाटा और सेमी के लोग इससे बहुत आहत है । यदि ऐसा होता है तो इन गांवो के लोगोंका व्यापार और सड़क सुविधा बाधित होगी । इसके साथ ही पौराणिक मंदिर, जल स्त्रोत भी समाप्त् हो जायेगे । यहां लोगों का कहना है कि जिस रोड़ पर वाहन चल रहे हैं, वही सुविधा मजबूत की जानी चाहिए । नई जमीन का इस्तेमाल होने से लम्बी दूरी तो बढ़ेगी ही साथ ही चौड़ी पत्ती के जंगल कट रहे है ।
के दारनाथ मार्ग पर रुद्रप्रयाग, अगस्तमुनी, तिलवाड़ा ऐसे स्थान है । जहां पर लोग सड़क चौड़ीकरण नहीं चाहते है । यदि यहाँ ऑल वेदर रोड़ नये स्थान से बनाई गई तो वनों का बढ़े पैमाने पर कटान होगा और यहां का बाजार सुनसान हो जाएगा । प्रभावितों का कहना है कि सरकार केवल डेंजरजोन का ट्रीटमेंट कर दे तो सड़के ऑल वेदर हो जाएगी । चार धामों में भूस्खल व डेंजरजोन निर्माण एवं खनन कार्यो से पैदा हुए है ।
उत्तराखण्ड के लोगो ने अपने गांवों तक गाड़ी पहुचाने के लिए न्यूनतम पेड़ो को काट कर सड़क बनवायी है । वहीं ऑल वेदर रोड़ के नाम पर बेहिचक सेंकड़ो पेड़ कट रहे है । बद्रीनाथ हाईवे के दोनो ओर कई ऐसे दूरस्थ गांव है जहां बीच में कुछ पेड़ों के आने से मोटर सड़क नही बन पा रही है । कई गांवों की सड़के आपदा के बाद नही सुधारी जा सकी है इस पर भी लोग सरकार का ध्यान आकर्षित कर रहे है । चमोली के पत्रकारोंने उत्तराखण्ड के पर्यटन मंत्री सतपाल महाराज से ऑल वेदर रोड़ के बारे में पुछा है कि जोशीमठ को छोड़कर हेंलग-मरवाड़ी बाईपास क्यों बनाया जा रहा है । इससे जोशीमठ अलग थलग पड़ जाएगा । इस पर मंत्री ने जवाब दिया कि उन्हें इसकी कोई जानकारी नही है । अत: इससे जाहिर होता है कि उत्तराखण्ड की सरकार भूमि अधिग्रहण के लिए जितनी सक्रिय हुई है उतना उन्हेंप्रभावित क्षेत्र की पीड़ा को समझने का मौका नहीं मिला है ।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने ऑल वेदर रोड़ बनाने की घोषणा उत्तराखण्ड विधानसभा चुनाव के एन वक्त मेंकि थी तब से अब तक यह चर्चा रही है कि पहाड़ो के दूरस्त गांव तक सड़क पंहुचाना अभी बाकी है । सीमान्त जनपद चमौली उर्गम घाटी के लोग सन् २००१ से सुरक्षित मोटर सड़क की माँग कर रहे है । यहां कल्प क्षेत्र विकास आंदोलन के कारण सलना आदि गांवोंतक जो सड़क बनी है उस पर गुजरने वालें वाहन मौत के साये में चलते है । यह चार धामों में रहने वाले लोगों की यदि सुनी जाये तो मौजूदा सड़क को ऑल वेदर बनाने के लिए यात्रा काल में बाधित करने वाले डेंजरजोन का आधुनिक तकनिकी से ट्रीटमेंट किया जाये । सड़क के दोनों ओर २४ मीटर के स्थान पर १० मीटर तक की भूमि का अधिग्रहण होना चाहिए । क्योंकि यहा छोटे और सीमान्त किसानोंके पास बहुत ही छोटी छोटी जोत है । उसी मेंउनके गांव, कस्बे और सड़क किनारे अजीविको के साधन मौजूद है जिससे पलायन और रोजगार की दृष्टि से बचाना चाहिए ।
चारों धामों से आ रही अलकनंदा, मंदाकिनी,यमुना और भागीरथी के किनारों से गुजरने वाले मौजूदा सड़क मार्गो में पर्याप्त् स्थान की कमी है । जिसमें १० मीटर चौड़ी सड़क बनाना भी जोखिम पूर्ण है । यदि बाढ़, भूकम्प और भूस्खलन जैसी समस्याआें को ध्यान में रखा जाए तो यहां के पहाड़ो को कितना काटा जा सकता है यह पर्यावरणीय न्याय ध्यान में रखना जरुरी है । जहां घने जंगल है, वहां पेड़ो को नुकसान पहुचाए बिना सड़क बननी चाहिए । सड़क चौड़ीकरण टिकाउ डिजाइन भूगर्भविद्ों व विशेषज्ञों से बनाना चाहिए । निर्माण से निकलने वाला मल्बा नदियों में सीधे न फेंक कर सड़क के दोनों ओर सुरक्षा दीवार के बीच डालकर पौधारोपण होना चाहिये । ***
उत्तराखण्ड : पेड़ो पर टूट रहें `पहाड़'
सुरेश भाई
चारधाम के लिए बनने वाले ऑल वेदर रोड़ के दूसरे चरण का काम शुरु हो गया है । इसमेंऋषिकेश-गंगोत्री हाईवे पर आने वाले पेड़ो का कटना शुरु हो गया है । उत्तराखण्ड सरकार ऑल वेदर रोड़ के नाम पर ४३ हजार पेड़ काट रही है । लेकिन सवाल है कि १०-१२ मीटर सड़क विस्तारीकरण के लिए २४ मीटर तक पेड़ो का कटान क्यों किया जा रहा है?
आजकल चारधाम-गंगौत्री, यमनौत्री, के दारनाथ, बद्रीनाथ मार्गो पर हजारो वन प्रजातियों के उपर पहाड़ टूटने लगे है । ऋषिकेश से आगे देव प्रयाग, श्रीनगर, रुद्रप्रयाग, अगस्तमुनी, गुप्त्काशी, फाटा, त्रिजुगीनारायण, गोचर, कर्णप्रयाग, नंदप्रयाग, चमोली, पिपलकोटी, हेंलग से बद्रीनाथ तक हजारों पेड़ो का सफाया हो गया है ।
उत्तराखण्ड सरकार का दावा है कि वे वेदर रोड़ के नाम ४३ हजार पेड़ काट रहे है । लेकिन सवाल खड़ा होता है कि १०-१२ मीटर सड़क विस्तारीकरण के लिए २४ मीटर तक पेड़ो का कटान क्यों किया जा रहा है ? और यहां नही भुलना चाहिए की एक पेड़ गिराने का अर्थ है १० अन्य पेड़ खतरे में आना इस तरह लाखों की संख्या में वन प्रजातियों का सफाया हो जाएगा ।
सड़क चौडीकरण के नाम पर देवदार के अतिरिक्त बाँझ, बुराँस, तुन, सीरस, उत्तीस, चीड़, पीपल आदि के पेड़ भी वन निगम काट रहा है जो वन निगम केवल ` वनों को काटो और बेचो ' की छवि पर खड़ा है, उससे ये आशा नहीं की जा सकती है कि वह पेड़ो को बचाने का विकल्प दे दें । यह एक तरफ तो सड़क चौड़ीकरण है और दूसरी तरफ वन निगम का कमाई का साधन एक बार फिर उछाल पर है ।
मध्य हिमालय के इस भू-भाग में विकास का यह नया प्रारुप स्थानीय पर्यावरण, पारिस्थितिकीय और जनजीवन पर भारी पड़ रहा है । सड़क निर्माण, सड़क चौड़ीकरण, बड़ी जलविद्युत परियोजनाआें व सुरंगों का निर्माण इस भूकम्प प्रभावित क्षेत्र की अस्थिरता को बढ़ा रहा है । भारी व अनियोजित निर्माण कार्यो का असर जनजीवन पर भी पड़ रहा है । इन बड़ी परियोजनाआें से भूस्खलन, भू-कटाव, बाढ़, विस्थापन आदि की समस्या लगातार बढ़ रही है ।
पर्यावरण कार्यकर्ताआें की टीम राधाभट्ट और इन पंक्तियों के लेखक ने वन कटान से प्रभावित इन धामों में प्रस्तावित लगभग ७५० किलोमीटर सड़क और इसके आसपास निवास करने वाले लोगों के बीच भ्रमण कर एक रिपोर्ट भी प्रधानमंत्री को सौंपने के लिए तैयार की है । कई स्थानोंपर सड़क चौड़ीकरण के नए इलाईमेंट करने से लोगों की आजीविका, रोजगार, जंगल समाप्त् हो रहे है ।
यह केदारनाथ मार्ग पर काकड़ गाड़ से लेकर मौजूदा सेमी-गुप्त्काशी तक के मार्ग को बदलने के लिए १० कि.मी. से अधिक सिंगोली के घने जंगलोंके बीच से नया इलाईमेंट लोहारा होकर गुप्त्काशी किया जा रहा है। इसी तरह फाटा बाजार को छोड़कर मेखंडा से खड़िया गांव से होते हुए नये रोड़ का निर्माण किया जाना है । फाटा और सेमी के लोग इससे बहुत आहत है । यदि ऐसा होता है तो इन गांवो के लोगोंका व्यापार और सड़क सुविधा बाधित होगी । इसके साथ ही पौराणिक मंदिर, जल स्त्रोत भी समाप्त् हो जायेगे । यहां लोगों का कहना है कि जिस रोड़ पर वाहन चल रहे हैं, वही सुविधा मजबूत की जानी चाहिए । नई जमीन का इस्तेमाल होने से लम्बी दूरी तो बढ़ेगी ही साथ ही चौड़ी पत्ती के जंगल कट रहे है ।
के दारनाथ मार्ग पर रुद्रप्रयाग, अगस्तमुनी, तिलवाड़ा ऐसे स्थान है । जहां पर लोग सड़क चौड़ीकरण नहीं चाहते है । यदि यहाँ ऑल वेदर रोड़ नये स्थान से बनाई गई तो वनों का बढ़े पैमाने पर कटान होगा और यहां का बाजार सुनसान हो जाएगा । प्रभावितों का कहना है कि सरकार केवल डेंजरजोन का ट्रीटमेंट कर दे तो सड़के ऑल वेदर हो जाएगी । चार धामों में भूस्खल व डेंजरजोन निर्माण एवं खनन कार्यो से पैदा हुए है ।
उत्तराखण्ड के लोगो ने अपने गांवों तक गाड़ी पहुचाने के लिए न्यूनतम पेड़ो को काट कर सड़क बनवायी है । वहीं ऑल वेदर रोड़ के नाम पर बेहिचक सेंकड़ो पेड़ कट रहे है । बद्रीनाथ हाईवे के दोनो ओर कई ऐसे दूरस्थ गांव है जहां बीच में कुछ पेड़ों के आने से मोटर सड़क नही बन पा रही है । कई गांवों की सड़के आपदा के बाद नही सुधारी जा सकी है इस पर भी लोग सरकार का ध्यान आकर्षित कर रहे है । चमोली के पत्रकारोंने उत्तराखण्ड के पर्यटन मंत्री सतपाल महाराज से ऑल वेदर रोड़ के बारे में पुछा है कि जोशीमठ को छोड़कर हेंलग-मरवाड़ी बाईपास क्यों बनाया जा रहा है । इससे जोशीमठ अलग थलग पड़ जाएगा । इस पर मंत्री ने जवाब दिया कि उन्हें इसकी कोई जानकारी नही है । अत: इससे जाहिर होता है कि उत्तराखण्ड की सरकार भूमि अधिग्रहण के लिए जितनी सक्रिय हुई है उतना उन्हेंप्रभावित क्षेत्र की पीड़ा को समझने का मौका नहीं मिला है ।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने ऑल वेदर रोड़ बनाने की घोषणा उत्तराखण्ड विधानसभा चुनाव के एन वक्त मेंकि थी तब से अब तक यह चर्चा रही है कि पहाड़ो के दूरस्त गांव तक सड़क पंहुचाना अभी बाकी है । सीमान्त जनपद चमौली उर्गम घाटी के लोग सन् २००१ से सुरक्षित मोटर सड़क की माँग कर रहे है । यहां कल्प क्षेत्र विकास आंदोलन के कारण सलना आदि गांवोंतक जो सड़क बनी है उस पर गुजरने वालें वाहन मौत के साये में चलते है । यह चार धामों में रहने वाले लोगों की यदि सुनी जाये तो मौजूदा सड़क को ऑल वेदर बनाने के लिए यात्रा काल में बाधित करने वाले डेंजरजोन का आधुनिक तकनिकी से ट्रीटमेंट किया जाये । सड़क के दोनों ओर २४ मीटर के स्थान पर १० मीटर तक की भूमि का अधिग्रहण होना चाहिए । क्योंकि यहा छोटे और सीमान्त किसानोंके पास बहुत ही छोटी छोटी जोत है । उसी मेंउनके गांव, कस्बे और सड़क किनारे अजीविको के साधन मौजूद है जिससे पलायन और रोजगार की दृष्टि से बचाना चाहिए ।
चारों धामों से आ रही अलकनंदा, मंदाकिनी,यमुना और भागीरथी के किनारों से गुजरने वाले मौजूदा सड़क मार्गो में पर्याप्त् स्थान की कमी है । जिसमें १० मीटर चौड़ी सड़क बनाना भी जोखिम पूर्ण है । यदि बाढ़, भूकम्प और भूस्खलन जैसी समस्याआें को ध्यान में रखा जाए तो यहां के पहाड़ो को कितना काटा जा सकता है यह पर्यावरणीय न्याय ध्यान में रखना जरुरी है । जहां घने जंगल है, वहां पेड़ो को नुकसान पहुचाए बिना सड़क बननी चाहिए । सड़क चौड़ीकरण टिकाउ डिजाइन भूगर्भविद्ों व विशेषज्ञों से बनाना चाहिए । निर्माण से निकलने वाला मल्बा नदियों में सीधे न फेंक कर सड़क के दोनों ओर सुरक्षा दीवार के बीच डालकर पौधारोपण होना चाहिये । ***
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