मंगलवार, 16 जनवरी 2018

आंचलिक
मंदसौर में जलवायु परिवर्तन की आहट
डॉ. घनश्याम बटवाल
जलवायु परिवर्तन की स्थितियां चिंताजनक होती जा रही है। राष्ट्रीय संदर्भ में देखें तो देश में ही प्रतिदिन १५० से अधिक लोगो की मृत्यू प्रदूषण के कारण हो रही है । स्थानीय प्रादेशिक और राष्ट्रीय स्तर पर समग्र प्रयास नहीं किये गये तो, आगामी मात्र १० वर्षोंा में प्रदूषण से मरने वालों की संख्या बढ़कर प्रतिदिन २५० तक पहुंच जाएगी । प्रदूषण फैलाने में सबसे बड़ी भूमिका मानव निर्मित ही है, इनमें परिवहन, निर्माण और इंर्धन प्रमुख कारक है ।
Image result for mandsaur railway station मध्यप्रदेश के अन्य क्षेत्रो के साथ ही मंदसौर जिले में भी जलवायु परिवर्तन का दुष्प्रभाव स्पष्ट दिखायी दे रहा है । ऋतु चक्र प्रभावित होकर ३०-४० दिन आगे खिसक रहा है । ग्रीष्म ऋतु प्रभाव तुलनात्मक अधिक दिनों तक सक्रियरहता है । उच्चतम तापमान ४१-४२ डिग्री सेंटीग्रेड से बढ़कर ४५-४६ डिग्री तक पहुंच गया  है । वर्षा ऋतु में मानसून सक्रियता अवधि घटी है । विगत तीन वर्षोंा का आकलन करें तो सन् २०१५ में जिले में मात्र ९०० मिली मीटर वर्षा दर्ज की गई जो औसत से कम रही है । इसमें माह जून-जूलाई में ही कुल वर्षा की ८५ प्रतिशत वर्षा हो गई जबकि अगस्त-सितम्बर-अक्टूबर महिनो में मात्र १५ फीसदी वर्षा हुई । वर्षा दिन भी कम रहे जिससे वर्षा जल बह कर चला गया ।  यहां ध्यान देने योग्य है कि सन् २०१५ में प्रदेश में औसत वर्षा १०५० मिली मीटर दर्ज हुई । वही पश्चिम मध्यप्रदेश के जिलों में औसत वर्षा ९६० मिली मिटर हुई । मंदसौर जिले में इससे भी कम । मंदसौर-नीमच जिले मध्यप्रदेश के पश्चिमी क्षेत्र और राजस्थान के पूर्वीक्षेत्र से जुड़े है । सन् २०१६ में औसत रुप से जिले में अच्छी और व्यापक वर्षा दर्ज की गई । आंकड़ा ४२ इंच तक दर्ज हुआ । इससे कुछ क्षेत्रो मेंमक्का, उड़द, मूंग और मुंगफली की फसले गलनें के मामले सामने आये । हाल में २०१७ के मानसून ने फिर रुप परिवर्तित किया और वर्षा घट कर ९०० मिलीमीटर से भी कम हुई। इसका प्रभाव फसलों और अन्य कारको पर पड़ा है ।

वर्षा के असमान क्रम से जिले मेंखरीब और रबी की फसलो पर प्रभाव पड़ रहा है । एक तो वेसे ही जिले में बड़ी संख्या में कुए स्थापित है । फिर जल स्त्रोतों के दोहन, नलकूप खनन से सतही जल से अंधाधुंध भूमिगत जल स्तर में गिरावट आई है । कही कही तो ६००-७०० फीट गहराई तक पर्याप्त् जल नहीं मिल पा रहा है । मंदसौर जिले में खरीफ फसलों की बुआई ही २ लाख हेक्टेयर के आसपास हो रही है । इसमें१ लाख ३२ हजार हेक्टेयर में सोयाबीन पैदावार ली जा रही है । मक्का, उड़द, मंूग, अरहर, मुंगफली, तिल आदि अन्य उपज है । इसी प्रकार रवी फसलों में लहसुन, रायड़ा, गेंहू, धनिया, मैथी, चना और विशेष रुप से अफीम उत्पादन किया जा रहा है । अल्प वर्षा के चलते कृषि वैज्ञानिक, कृषि विभाग, किसान कम पानी की अगेती प्रजातियों की बोवनी की सिफारीश कर रहें है । और १०० से अधिक प्रकार की विभिन्न दलहन, तिलहन, अनाज और मसाला, औषधीय फसलें इन दिनों पैदा हो रही है ।
अल्प वर्षा के कारण मंदसौर जिले के दलोदा, मल्हारगढ़, सीतामऊ , मंदसौर तथा सुवासरा सहित पांच तहसीले   डार्क झोन   में अंकित की गई है । यह स्थिति विगत वर्षोंा से है । इसके बावजूद ऐसे अपेक्षित सुधार नही हो पाए जिससे डार्क झोन से बाहर आ सकें । यहां-वहां आज भी अवैध रुप से नलकू प खनन किया जा रहा है । जिले को किसानों को खड़ी फसलों को बचाने के लिये सिंचाई हेतु टैंकरों से जलपूर्ति करना पड़ रही है ।
कम वर्षा के प्रभाव से मंदसौर जिले के कुंए, तालाब,बावड़ियां, नदियां, जलाशय ३०-४० प्रतिशत गत वर्ष की तुलना में आज ही रिक्त है । जिलें में कोई कोई १५-१६ हजार हेक्टेयर रकबे में अफीम की फसल की खेती होगी । इसमें कम से कम १० बार सिंचाई की जरुरत है, इसकी आपूर्ति भी नहीं हो पायेगी । 
अधिक उत्पादन के लालच में किसानों का भ्रम है कि अधिक खाद से अधिक पैदावार होगा । इसके कारण मात्र ८ वर्षोंा में ही जिलो में रसायनिक खाद की खपत १०० मिट्रिक टन बढ़ गई है । जिले में खाद की खपत बढ़कर ८०० मिट्रिक टन से भी अधिक हो गई है । इसका दुष्प्रभाव खेतों की उर्वरा शक्ति पर पड़ा है, भूमि की पीएच वेल्यू के मानक भी बदल गये है । इसी तरह कीटनाशकों का भी प्रयोग अंधाधुन्ध स्तर पर किया जा रहा है ।
जिले में जलस्त्रोतों, नलकूपो और कुआेंके  जल में नाइट्रेट, केल्शियम, कार्बोनेट, मेग्नीशियम सल्फेट, आक्जेलेट, क्लोराईड व अन्य खनिज लवण निर्धारित से अधिक मात्रा मेंपाये जा रहे है । केन्द्रींय भूजल बोर्ड के मानक अनुसार नाइट्रेट न्यूनतम ४५ एम.एल. प्रति लिटर और अधिकत १७१ एम.एल. प्रति लिटर होना चाहिए, जबकी परिक्षण उपरान्त नाइट्रेट ४९ से २१७ एम.एल. प्रति लिटर तक पाया गया है । यह विभिन्न रोगोंका जनक है बड़ी संख्या में ग्रामीण क्षेत्र के लोग प्रभावित हो रहें है ।
जिले में पीएचई विभाग की दो प्रयोगशालाएं संचालित है । विभाग द्वारा ग्रामीणों को जल स्त्रोतों की जांच के लिए   किट   दिये गये है । वही ग्रामीण क्षेत्र के स्कूलोंमें समन्वयकों के माध्यम से प्रदूषित जल तथा स्त्रोंतो की पहचान की समझाईश दी जा रही है । विशेषज्ञ चिकित्सकों के अनुसार नाइट्रेट, कै ल्शियम, ऑक्जलेट, मैग्नीशियम सल्फेट, कार्बोनेट, फ्लोराइड आदि की बहुलता से बच्चों व वयस्कों को गुर्दे व पित्ताशय की पथरी, पीलिया, गेस्ट्रोन्ट्राइटीस, चर्मरोग, पेट के रोग और आहार तंत्र जनित बीमारियां अधिक हो रही है ।
जिलें में प्रतिवर्ष पौधारोपण किया जा रहा है परन्तु पौधों के संरक्षण अभाव में४० प्रतिशत पौधें पेड़ का आकार नहीं ले पा रहें है । जिले में फसलों के  नुकसान नीलगायों से भी हो रहा है ।
जिले में बहने वाली नदियां शिवना, चम्बल, रेवा, तुम्बड़, रेतम आदि के जल बहाव क्षेत्र मेंप्रदूषण बढ़ा है और जल स्तर घटा है । वर्तमान पेयजल, सिंचाई के लिये जल संग्रहित किया गया है । जो वर्ष भर के लिए अपर्याप्त् है । जलाशआें, तालाबों, नाले आदि पर अतिक्रमण बढ़ जाने से आकार घटा है , वही आने वाले वर्षा जल में भी रुकावट हो रही है ।
मंदसौर नगर के तैलीया तालाब के जल संग्रहण क्षेत्र से ५० हजार से अधिक नागरिकों की वार्षिक जलापूर्ति हो सकती है, इसके भराव से जल स्तर में वृद्धि होती है । कुंए-बावड़ियें, नलकूपोंका जल स्तर बढ़ जाता है परन्तु यह तालाब ही अतिक्रमण की चपेट मेंहै । चिन्हित अतिक्रमण भी प्रशासन, पुलिस, नगर पालिका नही हटा पाई है । इसका दुष्परिणाम सारा मंदसौर झेल रहा है ।   शिवना नदि   का प्रदूषण २० वर्षोंा में भी रत्तीभर कम नहीं हुआ है । नदी बचाओ अभियान में   शिवना नदी   पर कार्य हो तो सामाजिक संगठन, स्वयं सेवक तथा कई पर्यावरण प्रेमी साथी सहयोग और योगदान के लिए तैयार है ।
मंदसौर जिले में सबसे अधिक दुपहिया वाहन और ट्रेक्टर है जुगाड़ गाड़ियों की भी बहुतायत है, ये सब प्रदूषण बढ़ाने में योगदान कर रहे है । मंदसौर जिले में जिला पंचायत, जनपद पंचायत, ग्राम पंचायत, नगर निकायो सहित अन्य विभागो द्वारा कराये जा रहे निर्माण और विकास कार्यो में पर्यावरण हित संरक्षण का समुचित ध्यान नहीं रखा जा रहा है ।
जल संवर्धन-जल संरक्षण के लिए शासकीय भवनों, अशासकीय भवनों, निजी क्षेत्र के आवासीय, व्यवसायिक भवनों पर छतीय जल संरक्षण के पर्याप्त उपाय नहीं हो रहे है । नगर निकायों के निर्देश उपरांत का निगरानी नहीं हो रही है । मंदसौर की शिवना नदी मुख्य पेयजल स्त्रोत है । 
जलवायु परिवर्तन के दुर्गामी और तत्कालीन दुष्प्रभावों का जानबुझ कर अनदेखा किया जा रहा है । इसमें आमजन, नागरिक सहित समस्त मशीनरी शामिल है । पर्यावरण संरक्षण, प्रदूषण नियंत्रण के लिए सम्बंधित तबके मेंसमन्वय का पूरी तरह अभाव है । किसी भी स्तर पर कोई निगरानी संगठन/संस्था नहीं है । पूर्व में केन्द्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय द्वारा सन् १९९०-१९९५ में जिला स्तर पर `पर्यावरण वाहिनी ' गठित की गई । इसके माध्यम से पर्यावरण हितों की अनदेखी पर तथ्यात्मक रिपोर्ट की जाती थी और समयबद्ध निदान होता था । मंदसौर जिले में पर्यावरण वाहिनी के माध्यम से जागरुकता के अलावा पर्यावरण संरक्षण और प्रदूषण निवारण के उपाय किये गये ।
पर्यावरण सुधार, प्रदूषण नियंत्रण और जलवायु परिवर्तन दुष्प्रभाव से निपटने के लिए वन विभाग, पुलिस विभाग, यातायात विभाग, परिवहन विभाव, प्रशासन, खनिज एवं औद्योगिक विभाग, प्रदूषण निवारण मण्डल, लोकनिर्माण विभाग, म.प्र. विद्युत मण्डल, भारत संचार निगम, जिला पंचायत, उद्यानिकी विभाग, कृषि विभाग, नगर पालिका, नगर परिषद, जनपद पंचायत, जल संसाधन, ग्राम पंचायत स्तर तक एकरुपता से नियत मानदण्डोंपर समन्वय कर दायित्व सौंपने चाहिये तथा समयबद्ध निगरानी होनी चाहिए । आमजन में मिडिया, गोष्ठी, सम्वाद, सम्पर्क और जागरुकता के माध्यम से इन सबको मिलजुल कर प्रयास करने होगे । स्वच्छता अभियान से पर्यावरण संरक्षण और प्रदूषण नियंत्रण को जोड़ना होगा इससे जलवायु परिवर्तन के दुष्प्रभाव को रोका जा सकेगा । ***

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