मंगलवार, 16 जनवरी 2018

स्वास्थ्य
एंटीवेनम के नवाचारी प्रयोग
अफसाना पठान
सांप किसी को ऐसे तो नुकसान नही पहुंचाते लेकिन गलती से अगर इन पर पैर पड़ जाये या कोई इन्हे परेशान करें, तो ये अपनी जान बचाने के लिए हमला करते है । सांपो की कई प्रजातियां होती है जिन्हे आप जानते भी होगें । 
सांपो की हर प्रजाति जहरीली नही होती लेकिन कुछ प्रजातियां बहुत जहरीली होती है, जैस - वायपर, माम्बा और टायफन जिनके काटने से जान भी जा सकती है । कार्पेट वायपर बहुत ही जहरीला सांप होता है । इसके काटनेसे इसका जहर रक्त में पहुंच कर थक्का बनने से रोकता है जिसके कारण रक्त का बहाव तेज हो जाता है और रक्त वाहिनियां क्षतिग्रस्त हो जाती है, इस कारण नाक, मुंह से खून बहने लगता है । इससे या तो व्यक्ति की मृत्यु हो जाती है या वह लकवा ग्रस्त हो जाता है ।
सांप के काटने से होने वाली मृत्यु का प्रतिशत भी उतना ही है जितना किसी महामारी के होने वाली मौतोंका होता है । विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार प्रतिवर्ष पूरे विश्व मेंलगभग ५ लाख लोग सांप के काटने का शिकार होते है । इनमे से लगभग १ लाख की मौत हो जाती है और ४ लाख लोग लकवा ग्रस्त हो जाते है । भारत में २००५ में किये गये सर्वे से यह बात उजागर हुई थी कि ४५००० से ज्यादा मौतें सांप के काटने से होती है । नाइजीरिया मेंप्रतिवर्ष सेकड़ों मृत्यु इन सांपो के काटनेसे होती है । सांप के काटने के सबसे ज्यादा शिकार गरीब देशोंके गरीब और बेघर लोग होते है ।
सांप के काटने से जान बचाने का एक ही तरीका है - सही समय पर इलाज । पीड़ित व्यक्ति को फौरन नज़दीकी अस्पताल ले जाना चाहिए । यदि व्यक्ति को सही उपचार नहीं मिलता है तो उसकी मृत्यु हो सकती है । ऐसा सुना गया है कि दवा की पहुंच न होने या तुरन्त उपचार न मिलने के  कारण पीड़ित व्यक्ति पेट्रोल या केरोसिन पीते है या तंत्र विद्या का सहारा लेते है जो एकदम गलत है और इसके प्रति लोगों को जागरुक करने की आवश्यकता है । क्योंकि सांप के काटनेसे सिर्फ एंटीवेनम ही बचा सकता है । 
अभी तक हमारे पास पर्याप्त् एंटीवेनम मौजूद है और इससे सांप के काटने को इलाज किया जा सकता है । लेकिन आने वाले कु छ वर्षोंा में यह पर्याप्त्
नहीं होगा, क्योंकि दवा का विश्वसनीय बाज़ार उपलब्ध न होने के कारण विकसित देशों की कई दवा निर्माता कम्पनियों में इनके निर्माण से अपने हाथ खिंच लिये है और कई देशों में एंटीवेनम का विकास थम-सा गया है । सोनोफी पाश्चर कंपनी ने फेव-अफ्रीके नामक एंटी-वेनम बनाना बंद कर दिया है । बता दें कि फेव-अफ्रीके अब तक का सबसे प्रभावी कॉम्बीनेशन एंटीवेनम है ।
लेटिन अमेरीका की सरकारी प्रयोगशालाआेंमें एंटीवेनम बनाया जाता है और मुफ्त में अस्पतालों और क्लीनिकों को मुहैया कराया जाता है । लकिन दुर-दराज के इलाको, जैसे उप-सहारा अफ्रीका, जहां इस दवा की सबसे ज्यादा ज़रुरत है वह इसकी पहुंच मुश्किल है । सरकारी काम काज मेंभ्रष्टाचार के चलते इस दवा को मुफ्त मेंउपलब्ध करवाने की बजाय उंचे दामों पर बेचा जाता है । यह समय पर इलाज न मिल पाने का एक बड़ा कारण है ।
एंटीवेनम को लेकर एक और सबसे बड़ी चिंता इस बात की है कि जब इसका विकास पैसा कमाने के लालच में किया जाएगा तो लाजमी है कि दवा की कीमत भी ज्यादा होगी । और हमारें जैसे विकासशील देशों में इस महंगी दवा की कीमत कितने लोग चुका पाएगें, वह भी तब जब इसकी सबसे ज्यादा जरुरत गरीब लोगों का है? 
एंटीवेनम दवा की एक और बड़ी समस्या यह है कि इस दवा की लाइफ बहुत कम होती है और इसे पूरे समय रेफ्रिजरेशन की जरुरत पड़ती है । दुरस्थ स्थानों और विकासशील देशों के कई गावों में जहां बिजली की समस्या है वहां इसका भण्डारण नामुमकिन है ।
सबसे पहले एंटीवेनम बनाने की विधि फ्रांसीसी चिकित्सक एल्बर्ट कालमेटी ने १८९० के दशक मेंविकसित की थी । एंटीवेनम बनाने का खर्च बहुत अधिक इसलिए भी आता है क्योंकि यहां हमारे शरीर में नही बनता। एंटीवेनम बनाने के लिए सांप के दूध से कुछ मात्रा मेंजहर को घोड़े और भेड़ के शरीर में इंजेक्ट किया जाता है ताकि उनका शरीर ज़हर को बेअसर करने वाली एंटीबॉडीस बनाना शुरु कर दें । फिर धीरे-धीरे इस ज़हर की खुराक को बढ़ाया जाता है ताकि ज्यादा तादाद में एंटीबॉडी बना सकें । 
घोड़े और भेड़ सांप के ज़हर के प्रतिरोधी पायेगये है । लेकिन हर प्रजाति के सांप के लिए अलग प्रकार की एंटीबॉडी बनाई जाती है । मकड़ी और बिच्छू का ज़हर भी घातक होता है इनके ज़हर मेंकेवल एक या दो तरह के टॉक्सिक प्रोटीन होते है । लेकिन सांप के ज़हर मेंइससे १० गुना ज्यादा मात्रा में टॉक्सिक प्रोटीन पाये जाते है । फिलहाल तो एंटी बॉडीज़ बनाने के लिये यही प्रक्रिया इस्तेमाल की जा रही है लेकिन भविष्य मेंवेज्ञानिकों का कहना है कि इससे बेहतर तरीके सेएंटीवेनम बनाये जा सकेंगे । कुछ साल पहले की बात है जब सेन जोस स्थित कोस्टारिका यूनिवर्सिटी के विष विज्ञानी हैरिसन और जोस मारिया गुटियरेज़ ने वेनोमिक्स और एंटीवेनोमिक्स का इस्तेमाल करके उप-सहारा अफ्रीका के लिए एक सर्व उपयोगी एंटीवेनम बनाने के प्रयास किये थे । इसके लिए ज़हर में उपस्थित घातक प्रोटीन की पहचान करने के लिए विभिन्न तकनीकोंका इस्तेमाल किया गया । 
इस प्रक्रिया का उद्देश्य कृत्रिम रुप से एंटीबॉडीस बनाना है । जिसमेंकिसी भी पशु के बजाय कोशिका का इस्तेमाल करके सर्व उपयोगी एंटीवेनम बनाया जा सकेगा । हाल ही में गुटियरेज़ की टीम को इसमें कुछ सफलता मिली है । उन्होनें जहरीले सांपो की एक प्रजाति एलीपिड से जहरीला प्रोटीन खोजने में सफलता हासिल की है यह उपचार की दिशा में पहल कदम है । अगर यह शोध सफल रहता है तो बहुत जल्द एंटीवेनम की कमी को पुरा किया जा सकेगा ।***

कोई टिप्पणी नहीं: