हमारा भूमण्डल
वैज्ञानिक दृष्टिकोण और शिक्षा
डॉ. नटराजन पंचापकेसन
वैज्ञानिक दृष्टिकोण का मतलब होता है प्राकृतिक विज्ञान के अलावा अन्य क्षैत्रोंजैसे सामाजिक और नैतिक मामलोंमें वैज्ञानिक तरीकों का उपयोग करना ।
वैज्ञानिक दृष्टिकोण हासिल करना मानव व्यवहार में परिर्वतन लाता है और इसलिए यह प्राकृतिक विज्ञान का हिस्सा नहीं है । यह प्राकृतिक विज्ञान का अध्ययन करने से नहीं बल्कि वैज्ञानिक तरीकों से मानव व्यवहार में अमल करने से मज़बूत होता है । सभी छात्रों (वैज्ञानिकों सहित) में वैज्ञानिक दृष्टिकोण को मज़बूत करने के लिए उनके पाठ्यक्रम में सामाजिक विज्ञान और मानविकी को शामिल करने की आवश्यकता है । इसका कारण है कि वैज्ञानिक दृष्टिकोण एक मनोवैज्ञानिक रवैया है जो रोज़मर्रा का विज्ञान करते रहने से प्रभावित नहीं होता बल्कि इसके लिए अपने मूल्यों और नैतिकता के ढांचे में बदलाव की ज़रुरत होती है । भारत में यह अभी भी काफी हद तक परिवार और समाज द्वारा तय किया जाता है । यह कई व्यक्तियों, वैज्ञानिक और गैर-वैज्ञानिक दोनों का अवलोकन है ।
अधिकांश का मनना है कि मूल्य और विवेक (समझदारी) प्राकृतिक विज्ञान से अलग है । हमारे व्यवहार और रवैये को काफी हद तक हमारा नैतिक मूल्यों का ढांचा तय करता है । फिर भी एक बात तो माननी होगी पिछले ६० वर्षोंा में विज्ञान और प्रोद्योगिकी के कारण जीवन और पर्यावरण में बड़े स्तर पर हुए बदलावों ने अंधविश्वासों की साख(के दबदबे) को कम कर दिया है । अब लोग गुरुवार को दक्षिण की तरफ यात्रा के बारे में उतनी चिंता नही करते जितना पहले किया करते थे । ग्रहण के बाद वस्त्रोंसहित स्नान के बारे में मुझे नहीं पता है जिसकी अनुशंसा हाल ही में कुछ समाचार पत्रों द्वारा की गई थी ।
चर्चा को आगे बढ़ानं के लिए-एक व्यापक परिप्रेक्ष्य से विज्ञान/गैर विज्ञान के विभाजन-यानी एक व्यक्ति की विश्व दृष्टि को देखना उपयोगी हो सकता है । विश्व दृष्टि स्मृति, ज्ञान, व्यवहार, मूल्य, नज़रिए आदि का संग्रह है,और यही वह चीज़ है जो किसी व्यक्ति के विचारोंऔर क्रियाआें को दिशा देती है हम खुद को विश्व के केंद्र में रखकर शुरु कर सकते हैं । जब हम बाहर की ओर बढ़ते हैं, दुनिया में अवास्तविक
सपने ओर कल्पनाएं है, स्वाद और पसंद हैं, जिनमें से कई को व्यक्त भी नही किया जा सकता ।
फिर हम कला, मानविकी, सामाजिक विज्ञान और उसके बाद भौतिक विज्ञान, रसायन विज्ञान जैसे प्राकृतिक विज्ञान पर आते है, जो सबसे बाहरी वृत्त है । वर्तमान चर्चा के लिए हम सामाजिक विज्ञान तक की विश्व दृष्टि को अंदरुनी विश्व और प्राकृतिक विज्ञान और उसके आगे की दृष्टि को बाहरी विश्व कह सकते है ।
बाहरी दुनिया वस्तुनिष्ठ या अवैयक्तिक दुनिया है जो हम सबके लिए एक समान है, जो मेरे जन्म से पहले अस्तित्व मेंथी, अभी भी है और मेरी मृत्यु के बाद भी अस्तित्व मेंरहेगी । हालांकि इसमें मेरे लिए कोई यथार्थ नहीं कि मेरी मृत्यु के बाद क्या होगा लेकिन अब मैं एक ऐसी दुनिया की कल्पना कर सकता हँू जो संभवत: मेरी अनुपस्थिति में मौजूद रहेगी । यही भौतिक शास्त्र और अन्य प्राकृतिक विज्ञानों की दुनिया है । बाहरी दुनिया के अवैयक्तिक विवरण मेंभावनाएं या जज़्बात प्रवेश नहीं करतें। इसमें तर्क और वैज्ञानिक पद्धति (परिणाम को दोहराने की संभावना और खंडन-योग्यता) आवश्यक हैं । इस दुनिया का एक सार्वभौमिक समय और इतिहास है । यह प्रत्येक व्यक्ति के लिए अपनी अनुभूतियों (इंद्रियों) के माध्यम से सुगम है ।
विज्ञान बाहरी दुनिया से संबंधित है और यह हमारे ज्ञान के साथ-साथ इसके कानून और विकास का भी निर्धारण करता है । यहां विज्ञान शब्द प्राकृतिक विज्ञान का द्योतक है, सामाजिक विज्ञान तो आतंरिक दुनिया से संबंंधित है । प्राकृतिक और सामाजिक विज्ञान के बीच और अंतर महत्वपूर्ण है । जैसा कि बर्कले स्थित कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय के दार्शनिक जॉन आर.सर्ल ने कहा है तथाकथित प्राकृतिक विज्ञान और सामाजिक विज्ञान के बीच यह अंतर चाहे कितना भी अस्पष्ट क्योंन हो, एक मुलभूत अंतर है, जो मूलतत्वज्ञान (चींज़ो के सार)पर आधारित है, यह दुनिया के उन गुणधर्मोंा के बीच है जो एक ओर मानव दृष्टिकोण से स्वतंत्र मौजुद हैं, जैसे बल, द्रव्यमान, गुरुत्वाकर्षण एवं प्रकाश संश्लेषण तथा दूसरी ओर वे चीज़े जिनका अस्तित्व मानवीय दृष्टिकोण पर निर्भर करता है, जैसे धन संपत्ति, विवाह और सरकार । सरल शब्दों में कहें तो यह अंतर दुनिया के उन गुणधर्मोंा के बीच है जो प्रेक्षक से स्वतंत्र है और जो प्रेक्षक पर निर्भर है ।
भौतिक शास्त्र, रसायन शास्त्र और जीवन विज्ञान जैसे प्राकृतिक विज्ञान, प्रकृति के ऐसे गुणधर्मोंा की बात करते हैं, जिनका अस्तित्व इस बात से स्वतंत्र
है कि हम क्या सोंचते है, दूसरी ओर समाज शास्त्र जैसे सामाजिक विज्ञान दुनिया के उन गुणधर्मोंा की बात करतें है जो कि वैसे हैं । सर्ल जिस प्रेक्षक-निर्भरता के बारे में बात करते है वह प्राकृतिक विज्ञान, विशेष रुप से क्वांटम यांत्रिकी, में देखी जाने वाले प्रेक्षक-निर्भरता से अलग है । सर्ल यहां संस्कृति, समाज और राज्य द्वारा व्यक्त अवधारणाआें और विचारों पर निर्भरता की बात कर रहे हैं ।
व्यक्तिपरक भागीदारी की प्रकृति के आधार पर, सामाजिक विज्ञान में आगे और वर्गीकरण हो सकता है, जिसे अवलोकन में अनिश्चितताएं बहुत ज्यादा हों तो स्व-अवलोकन अर्थहीन हो जातें हैं । तब हमें निष्कर्ष निकालने के लिए बड़ी संख्या में अवलोकन और सांख्यिकी विधियों का उपयोग करना होगा । नमूना जितना छोटा होगा अनिश्चितताएं उतनी ही अधिक होगी, जैसा कि हम अर्थशास्त्र की भविष्यवाणी में देख सकते हैं ।
आंतरिक दुनिया में मानविकी, कला, सामाजिक विज्ञान और वे सभी क्षैत्र शामिल है जो प्राकृतिक विज्ञान के बाहर है । हालांकि यह आंतरिक दुनिया विज्ञान का हिस्सा नहींहै, किंतु वैज्ञानिक विधि, यानी तर्क और विचार, यहां भी महत्वपूर्ण भूमिका निभातेंहैं और जहां संभव है वहां बड़ी त्रुटियां या फैलाव है । कभी-कभी इन क्षैत्रों का वर्णन करने के लिए सॉफ्ट साइंस शब्द उपयोग किया जाता है । उनके अध्ययन के लिए सांख्यिकी प्रणाली अनिवार्य है । इन विषयोंमें वस्तुनिष्ठता हासिल करना आसान नहीं हैं । इनमें तटस्थल एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है, हालांकि पूर्ण तटस्थल भी संभव नहीं है। मूल्य और नैतिकता मानवीय गुण है ं। वे आंतरिक दुनिया के अंग है यही कारण है कि हम कहते है कि (प्राकृतिक) विज्ञान और प्रौद्योगिकी से विवेक की प्रािप्त् नहीं होती । विज्ञान मूल्य तटस्थ हैं । यदि कोई उस मूल्य प्रणाली को बदलना चाहता है जिसमें वह पैदा हुआ है, तो वह मूल्यों की एक नई प्रणाली का निर्णय कैसे करेगा?
अल्बर्ट आइंस्टीन ने कहा है, वे प्रतिबद्धताएं जो हमारे आचरण और निर्णय के लिए निर्धारक और आवश्यक है , इस ठोस वैज्ञानिक तरीके से पूरी तरह से प्राप्त् नहीं हो सकती । क्या है का ज्ञान सीधे-सीधे यह नहीं बताया कि क्या होना चाहिए जो हमारी मानवीय आकांक्षाआें का लक्ष्य है । मूलभूत साध्य और मूल्यांकन...प्रदर्शनों के माध्यम से नहीं बल्कि सशक्त व्यक्तियों के माध्यम से इल्हाम के रुप मेंआते है । किंतु उन्हेंसही ठहराने का प्रयास नहीं करना चाहिए, बल्कि उनके स्वरुप को सरल और स्पष्ट रुप से समझने का प्रयास करना चाहिए ।
हर व्यक्ति निजी निर्णय करता है, जानबूझकर या अनजाने में ।
जैंसे ही हम अंदुरुनी दुनिया में और अधिक अंदर केंद्र की ओर जाते है, दिमाग के बजाय दिल निर्णायक हो जाता है । कोई भी फैसला लेने सेंप्यार, करुणा, दया, उत्साह और उल्लास एक बड़ी भूमिका निभाते हैं । बाहरी दुनिया में सृजन के उल्लास के बाद सत्यापन करना ज़रुरी होता है । सॉफ्ट साइंस के पास ऐसा कोई आसान तरीका नहींहै । अनुभवजन्य वैधता एक मुश्किल समस्या है । प्रायोगिक या गणितीय सबूत की अनुपस्थिति में, व्यक्तिगत संतुष्टि ही वैधता हो जाती है ।
एक उदाहरण संगीत के रसास्वादन का है । यहां व्यक्तिगत संतुष्टि एक महत्वपूर्ण कारक है , हालाकि अन्य विशेषज्ञों की राय भी भूमिका निभा सकती हैं । व्यक्तिगत संतुष्टि के साथ उत्साह या खुशी मिलती है और अच्छे संगीत ही हमारी पसंद का फैसला करती है । सार्वभौमिक सत्ता के साथ एक्य की भावना है । यह निश्चित रुप से प्रमाणवाद और भौतिकवाद से पार भौतिकी या मानवतावाद की ओर कदम हैं।
इन क्षेत्रों में, अनिश्चितता के साथ रहना पड़ता है और नतीजों की वैधता उसी हद तक प्रमाणित कर सकते हैं जितना सॉफ्ट साइंर्स अनुमति देता है । किन्तु वास्तविक दुनिया में विशेषज्ञ अधिकारी की स्वीकृति, मात्र वैधता पर आधारित नहीं होती । यह विचार के प्रर्वतक के व्यक्तित्व सामाजिक महत्व और उसकी ताकत का मिश्रण है । इसलिए तर्क, वास्तविकता से संबंध और यथासंभव वैज्ञानिक पद्धति का इस्तेमाल ही हमेंबता सकता है कि सम्राट नंगा है अर्थात मिथ्या जनमत से अंधे न होते हुए वास्तविकता को देखना । यह भारत में विशेष रुप से सच है जहां सभी प्रकार के मानव रुपी देवता बड़ी तादाद में मौजूद हैं ।
इस चर्चा का शिक्षा के लिए एक विशेष महत्व है जिसे व्यक्तिगत, नैतिक, निर्णयों के लिए मार्गदर्शन प्रदान करना चाहिए । वेज्ञानिक दृष्टिकोण में किसी समस्या को समझना विभिन्न विकल्पो पर विचार करना और फिर निर्णय लेना शामिल है । दुनियाभर में प्राकृतिक विज्ञान में विज्ञान शिक्षण, काफी हद तक (गणितीय और प्रायोगिक) और स्वीकृत विचारों का प्रसारण हैं यह चुननें के लिए विकल्पों का प्रस्तुतीकरण ठीक से नहीं करती और न ही चर्चा के लिए उपयुक्त है दरअसल, उपयुक्त विकल्प चुनने तथा वेज्ञानिक दृष्टिकोण पैदा करने का काम तो सामाजिक विज्ञान करता है ।
वर्तमान में विज्ञान के छात्रों के पाठ्यक्रम मेंसामाजिक विज्ञान की कमज़ोर हो रही भूमिका उन्हें नैतिक मुद्दो को संभालने तुा अखबारों और मिडीया में उनके बारे में निर्णय लेने या लिखने के लिए अच्छी तरह से तैयार नही कर रही हैं लिहाज़ा, सार्थक शिक्षा के लिए प्रत्येक छात्र ने पाठ्यक्रम में वैज्ञानिक दृष्टिकोण को शामिल करना आवश्यक है । ***
वैज्ञानिक दृष्टिकोण और शिक्षा
डॉ. नटराजन पंचापकेसन
वैज्ञानिक दृष्टिकोण का मतलब होता है प्राकृतिक विज्ञान के अलावा अन्य क्षैत्रोंजैसे सामाजिक और नैतिक मामलोंमें वैज्ञानिक तरीकों का उपयोग करना ।
वैज्ञानिक दृष्टिकोण हासिल करना मानव व्यवहार में परिर्वतन लाता है और इसलिए यह प्राकृतिक विज्ञान का हिस्सा नहीं है । यह प्राकृतिक विज्ञान का अध्ययन करने से नहीं बल्कि वैज्ञानिक तरीकों से मानव व्यवहार में अमल करने से मज़बूत होता है । सभी छात्रों (वैज्ञानिकों सहित) में वैज्ञानिक दृष्टिकोण को मज़बूत करने के लिए उनके पाठ्यक्रम में सामाजिक विज्ञान और मानविकी को शामिल करने की आवश्यकता है । इसका कारण है कि वैज्ञानिक दृष्टिकोण एक मनोवैज्ञानिक रवैया है जो रोज़मर्रा का विज्ञान करते रहने से प्रभावित नहीं होता बल्कि इसके लिए अपने मूल्यों और नैतिकता के ढांचे में बदलाव की ज़रुरत होती है । भारत में यह अभी भी काफी हद तक परिवार और समाज द्वारा तय किया जाता है । यह कई व्यक्तियों, वैज्ञानिक और गैर-वैज्ञानिक दोनों का अवलोकन है ।
अधिकांश का मनना है कि मूल्य और विवेक (समझदारी) प्राकृतिक विज्ञान से अलग है । हमारे व्यवहार और रवैये को काफी हद तक हमारा नैतिक मूल्यों का ढांचा तय करता है । फिर भी एक बात तो माननी होगी पिछले ६० वर्षोंा में विज्ञान और प्रोद्योगिकी के कारण जीवन और पर्यावरण में बड़े स्तर पर हुए बदलावों ने अंधविश्वासों की साख(के दबदबे) को कम कर दिया है । अब लोग गुरुवार को दक्षिण की तरफ यात्रा के बारे में उतनी चिंता नही करते जितना पहले किया करते थे । ग्रहण के बाद वस्त्रोंसहित स्नान के बारे में मुझे नहीं पता है जिसकी अनुशंसा हाल ही में कुछ समाचार पत्रों द्वारा की गई थी ।
चर्चा को आगे बढ़ानं के लिए-एक व्यापक परिप्रेक्ष्य से विज्ञान/गैर विज्ञान के विभाजन-यानी एक व्यक्ति की विश्व दृष्टि को देखना उपयोगी हो सकता है । विश्व दृष्टि स्मृति, ज्ञान, व्यवहार, मूल्य, नज़रिए आदि का संग्रह है,और यही वह चीज़ है जो किसी व्यक्ति के विचारोंऔर क्रियाआें को दिशा देती है हम खुद को विश्व के केंद्र में रखकर शुरु कर सकते हैं । जब हम बाहर की ओर बढ़ते हैं, दुनिया में अवास्तविक
सपने ओर कल्पनाएं है, स्वाद और पसंद हैं, जिनमें से कई को व्यक्त भी नही किया जा सकता ।
फिर हम कला, मानविकी, सामाजिक विज्ञान और उसके बाद भौतिक विज्ञान, रसायन विज्ञान जैसे प्राकृतिक विज्ञान पर आते है, जो सबसे बाहरी वृत्त है । वर्तमान चर्चा के लिए हम सामाजिक विज्ञान तक की विश्व दृष्टि को अंदरुनी विश्व और प्राकृतिक विज्ञान और उसके आगे की दृष्टि को बाहरी विश्व कह सकते है ।
बाहरी दुनिया वस्तुनिष्ठ या अवैयक्तिक दुनिया है जो हम सबके लिए एक समान है, जो मेरे जन्म से पहले अस्तित्व मेंथी, अभी भी है और मेरी मृत्यु के बाद भी अस्तित्व मेंरहेगी । हालांकि इसमें मेरे लिए कोई यथार्थ नहीं कि मेरी मृत्यु के बाद क्या होगा लेकिन अब मैं एक ऐसी दुनिया की कल्पना कर सकता हँू जो संभवत: मेरी अनुपस्थिति में मौजूद रहेगी । यही भौतिक शास्त्र और अन्य प्राकृतिक विज्ञानों की दुनिया है । बाहरी दुनिया के अवैयक्तिक विवरण मेंभावनाएं या जज़्बात प्रवेश नहीं करतें। इसमें तर्क और वैज्ञानिक पद्धति (परिणाम को दोहराने की संभावना और खंडन-योग्यता) आवश्यक हैं । इस दुनिया का एक सार्वभौमिक समय और इतिहास है । यह प्रत्येक व्यक्ति के लिए अपनी अनुभूतियों (इंद्रियों) के माध्यम से सुगम है ।
विज्ञान बाहरी दुनिया से संबंधित है और यह हमारे ज्ञान के साथ-साथ इसके कानून और विकास का भी निर्धारण करता है । यहां विज्ञान शब्द प्राकृतिक विज्ञान का द्योतक है, सामाजिक विज्ञान तो आतंरिक दुनिया से संबंंधित है । प्राकृतिक और सामाजिक विज्ञान के बीच और अंतर महत्वपूर्ण है । जैसा कि बर्कले स्थित कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय के दार्शनिक जॉन आर.सर्ल ने कहा है तथाकथित प्राकृतिक विज्ञान और सामाजिक विज्ञान के बीच यह अंतर चाहे कितना भी अस्पष्ट क्योंन हो, एक मुलभूत अंतर है, जो मूलतत्वज्ञान (चींज़ो के सार)पर आधारित है, यह दुनिया के उन गुणधर्मोंा के बीच है जो एक ओर मानव दृष्टिकोण से स्वतंत्र मौजुद हैं, जैसे बल, द्रव्यमान, गुरुत्वाकर्षण एवं प्रकाश संश्लेषण तथा दूसरी ओर वे चीज़े जिनका अस्तित्व मानवीय दृष्टिकोण पर निर्भर करता है, जैसे धन संपत्ति, विवाह और सरकार । सरल शब्दों में कहें तो यह अंतर दुनिया के उन गुणधर्मोंा के बीच है जो प्रेक्षक से स्वतंत्र है और जो प्रेक्षक पर निर्भर है ।
भौतिक शास्त्र, रसायन शास्त्र और जीवन विज्ञान जैसे प्राकृतिक विज्ञान, प्रकृति के ऐसे गुणधर्मोंा की बात करते हैं, जिनका अस्तित्व इस बात से स्वतंत्र
है कि हम क्या सोंचते है, दूसरी ओर समाज शास्त्र जैसे सामाजिक विज्ञान दुनिया के उन गुणधर्मोंा की बात करतें है जो कि वैसे हैं । सर्ल जिस प्रेक्षक-निर्भरता के बारे में बात करते है वह प्राकृतिक विज्ञान, विशेष रुप से क्वांटम यांत्रिकी, में देखी जाने वाले प्रेक्षक-निर्भरता से अलग है । सर्ल यहां संस्कृति, समाज और राज्य द्वारा व्यक्त अवधारणाआें और विचारों पर निर्भरता की बात कर रहे हैं ।
व्यक्तिपरक भागीदारी की प्रकृति के आधार पर, सामाजिक विज्ञान में आगे और वर्गीकरण हो सकता है, जिसे अवलोकन में अनिश्चितताएं बहुत ज्यादा हों तो स्व-अवलोकन अर्थहीन हो जातें हैं । तब हमें निष्कर्ष निकालने के लिए बड़ी संख्या में अवलोकन और सांख्यिकी विधियों का उपयोग करना होगा । नमूना जितना छोटा होगा अनिश्चितताएं उतनी ही अधिक होगी, जैसा कि हम अर्थशास्त्र की भविष्यवाणी में देख सकते हैं ।
आंतरिक दुनिया में मानविकी, कला, सामाजिक विज्ञान और वे सभी क्षैत्र शामिल है जो प्राकृतिक विज्ञान के बाहर है । हालांकि यह आंतरिक दुनिया विज्ञान का हिस्सा नहींहै, किंतु वैज्ञानिक विधि, यानी तर्क और विचार, यहां भी महत्वपूर्ण भूमिका निभातेंहैं और जहां संभव है वहां बड़ी त्रुटियां या फैलाव है । कभी-कभी इन क्षैत्रों का वर्णन करने के लिए सॉफ्ट साइंस शब्द उपयोग किया जाता है । उनके अध्ययन के लिए सांख्यिकी प्रणाली अनिवार्य है । इन विषयोंमें वस्तुनिष्ठता हासिल करना आसान नहीं हैं । इनमें तटस्थल एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है, हालांकि पूर्ण तटस्थल भी संभव नहीं है। मूल्य और नैतिकता मानवीय गुण है ं। वे आंतरिक दुनिया के अंग है यही कारण है कि हम कहते है कि (प्राकृतिक) विज्ञान और प्रौद्योगिकी से विवेक की प्रािप्त् नहीं होती । विज्ञान मूल्य तटस्थ हैं । यदि कोई उस मूल्य प्रणाली को बदलना चाहता है जिसमें वह पैदा हुआ है, तो वह मूल्यों की एक नई प्रणाली का निर्णय कैसे करेगा?
अल्बर्ट आइंस्टीन ने कहा है, वे प्रतिबद्धताएं जो हमारे आचरण और निर्णय के लिए निर्धारक और आवश्यक है , इस ठोस वैज्ञानिक तरीके से पूरी तरह से प्राप्त् नहीं हो सकती । क्या है का ज्ञान सीधे-सीधे यह नहीं बताया कि क्या होना चाहिए जो हमारी मानवीय आकांक्षाआें का लक्ष्य है । मूलभूत साध्य और मूल्यांकन...प्रदर्शनों के माध्यम से नहीं बल्कि सशक्त व्यक्तियों के माध्यम से इल्हाम के रुप मेंआते है । किंतु उन्हेंसही ठहराने का प्रयास नहीं करना चाहिए, बल्कि उनके स्वरुप को सरल और स्पष्ट रुप से समझने का प्रयास करना चाहिए ।
हर व्यक्ति निजी निर्णय करता है, जानबूझकर या अनजाने में ।
जैंसे ही हम अंदुरुनी दुनिया में और अधिक अंदर केंद्र की ओर जाते है, दिमाग के बजाय दिल निर्णायक हो जाता है । कोई भी फैसला लेने सेंप्यार, करुणा, दया, उत्साह और उल्लास एक बड़ी भूमिका निभाते हैं । बाहरी दुनिया में सृजन के उल्लास के बाद सत्यापन करना ज़रुरी होता है । सॉफ्ट साइंस के पास ऐसा कोई आसान तरीका नहींहै । अनुभवजन्य वैधता एक मुश्किल समस्या है । प्रायोगिक या गणितीय सबूत की अनुपस्थिति में, व्यक्तिगत संतुष्टि ही वैधता हो जाती है ।
एक उदाहरण संगीत के रसास्वादन का है । यहां व्यक्तिगत संतुष्टि एक महत्वपूर्ण कारक है , हालाकि अन्य विशेषज्ञों की राय भी भूमिका निभा सकती हैं । व्यक्तिगत संतुष्टि के साथ उत्साह या खुशी मिलती है और अच्छे संगीत ही हमारी पसंद का फैसला करती है । सार्वभौमिक सत्ता के साथ एक्य की भावना है । यह निश्चित रुप से प्रमाणवाद और भौतिकवाद से पार भौतिकी या मानवतावाद की ओर कदम हैं।
इन क्षेत्रों में, अनिश्चितता के साथ रहना पड़ता है और नतीजों की वैधता उसी हद तक प्रमाणित कर सकते हैं जितना सॉफ्ट साइंर्स अनुमति देता है । किन्तु वास्तविक दुनिया में विशेषज्ञ अधिकारी की स्वीकृति, मात्र वैधता पर आधारित नहीं होती । यह विचार के प्रर्वतक के व्यक्तित्व सामाजिक महत्व और उसकी ताकत का मिश्रण है । इसलिए तर्क, वास्तविकता से संबंध और यथासंभव वैज्ञानिक पद्धति का इस्तेमाल ही हमेंबता सकता है कि सम्राट नंगा है अर्थात मिथ्या जनमत से अंधे न होते हुए वास्तविकता को देखना । यह भारत में विशेष रुप से सच है जहां सभी प्रकार के मानव रुपी देवता बड़ी तादाद में मौजूद हैं ।
इस चर्चा का शिक्षा के लिए एक विशेष महत्व है जिसे व्यक्तिगत, नैतिक, निर्णयों के लिए मार्गदर्शन प्रदान करना चाहिए । वेज्ञानिक दृष्टिकोण में किसी समस्या को समझना विभिन्न विकल्पो पर विचार करना और फिर निर्णय लेना शामिल है । दुनियाभर में प्राकृतिक विज्ञान में विज्ञान शिक्षण, काफी हद तक (गणितीय और प्रायोगिक) और स्वीकृत विचारों का प्रसारण हैं यह चुननें के लिए विकल्पों का प्रस्तुतीकरण ठीक से नहीं करती और न ही चर्चा के लिए उपयुक्त है दरअसल, उपयुक्त विकल्प चुनने तथा वेज्ञानिक दृष्टिकोण पैदा करने का काम तो सामाजिक विज्ञान करता है ।
वर्तमान में विज्ञान के छात्रों के पाठ्यक्रम मेंसामाजिक विज्ञान की कमज़ोर हो रही भूमिका उन्हें नैतिक मुद्दो को संभालने तुा अखबारों और मिडीया में उनके बारे में निर्णय लेने या लिखने के लिए अच्छी तरह से तैयार नही कर रही हैं लिहाज़ा, सार्थक शिक्षा के लिए प्रत्येक छात्र ने पाठ्यक्रम में वैज्ञानिक दृष्टिकोण को शामिल करना आवश्यक है । ***
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