मंगलवार, 16 जनवरी 2018

गणतंत्र दिवस पर विशेष
पर्यावरण, स्वच्छता और जन सामान्य
डॉ. खुशाल सिंह पुरोहित
स्वच्छ भारत अभियान का मुख्य उद्देश्य गलियों, सड़को, गांवो और शहरों को स्वच्छ रखना है । इस अभियान में खुले में शौच से मुक्ति, अस्वच्छ शौचालयों को नवीन शौचालयों में परिवर्तित करने, सिर पर मैला ढोने की प्रथा का उन्मूलन करने, नगरीय ठोस, अपशिष्ट प्रबंधन और ग्रामीण क्षेत्र में स्वच्छता से संबंध में लोगो से व्यवहार में परिर्वतन लाने के लिए कार्य करना शामिल है ।
Related image एक स्वस्थ राष्ट्र के निर्माण में स्वच्छता की अहम भूमिका होती है । अभियान में प्रमुख रुप से देश में बड़े पैमाने पर प्रोद्योगिकी का उपयोग कर ग्रामीण क्षेत्रो में कचरे का इस्तेमाल कर उसे पूंजी का रुप देते हुए जैव उर्वरक और उर्जा के विभिन्न रुपों में परिवर्तित करना शामिल हैं ।
स्वच्छता अभियान एक राष्ट्रीय अभियान है इसमें प्रत्येक नागरिक की जिम्मेदारी तथा भागीदारी आवश्यक है । इसके द्वारा जन-जन में स्वच्छता के प्रति जागरुकता आएगी तो शहरों और ग्रामों में कचरे का निस्तारण वैज्ञानिक पद्धति से करने पर जहां एक ओर पर्यावरण स्वच्छ होगा वही उपयोगी पदार्थ भी बनाये जा सकेगें। इस प्रकार कचरे का निस्तारण हो जाएगा तो पर्यावरण प्रदुषण की समस्या भी कम होगी ।
आज हमारे देश में प्लास्टिक निर्मूलन एक गंभीर समस्या है । आज हर जगह प्लास्टिक की बोतलों में बंद पानी को प्रोत्साहित किया जा रहा है । सार्वजनिक कार्यक्रमोंमें प्लास्टिक, थर्माकॉल और एल्युमिनियम फॉयल से निर्मित  युज़ एण्ड थ्रो  पात्र प्रयोग में लाये जाते है कार्यक्रम खत्म होते ही समारोह स्थल पर इस कचरें क ेढेर लग जाते है । यह कचरा वज़न में अत्यन्त हलका होने के कारण उड़ कर आस-पास के क्षेत्रों में फैल जाता है । शहरों, कस्बो और गांवो के नैसर्गिक सौंदर्य पर यहा कचरा कलंक की तरह दिखायी देता है ।
भारत में ४५ करोड़ों लोग शहरों में रहते है ताजा आंकड़े बताते है कि भारत के ४ महानगरों में जहां १ करोड़ से ज्यादा आबादी रहती है । देश में १० लाख से अधिक आबादी वाले ५३ शहर है १० लाख से कम आबादी वालों शहरों की संख्या ४६८ है । यह सब मिलकर रोज़ाना ६० हजार टन कचरा उत्पन्न करते है और इस कचरें में से केवल६० प्रतिशत कचरा उठाया जाता है जो प्रक्रिया स्थल पर पहुंचता है । ज्यादातर कचरा अवैज्ञानिक तरीके से गांव से बाहर खड्डों में डाल दिया जाता है । भारतीय कचरे का उष्मांक मूल्य प्रति किलो ६००-८०० कैलोरी होता है  जबकि यूरोप अमेरिका मेंइससे कहीं अधिक अर्थात ३५०० कैलोरी प्रति किलो होता है । भारतीय कचरेंमें ७२-८१ प्रतिशत जैव कचरा १६-१८ प्रतिशत प्लास्टिक, कागज़ तथा कांच और बाकी घरेलू घटक व रसोई का कचरा होता है । जैव कचरें में पानी की मात्रा इतनी अधिक होती है उससे बिज़ली बनाना फायदेमंद नही होता है ।
हमारे देश में करीब १५ लाख टन ई-कचरा सालाना पैदा होता है । भारतीय उद्योग संगठन के एक अध्ययन में कहा गया है कि देश में ई कचरा पैदा करने वाले राज्यों में महाराष्ट्र प्रथम है, इसके बाद के क्रम में तमिलनाडू, आंध्रप्रदेश, उत्तरप्रदेश, दिल्ली और गुजरात राज्य आते है । सरकारी, निज़ी कार्यालय और औद्योगिक संस्थान ७१ प्रतिशत ई-कचरा पैदा करते है जबकि घरों का ई-कचरें में योगदान १६ प्रतिशत है । ई-कचरे में प्राप्त् वस्तुआें और उत्पादों को फिर से इस्तेमाल करने लायक बनाने के लिए भारत मुख्य रुप से असंगठित क्षेत्र पर निर्भर है । इनमें काम करने वाले लोग बिना किसी बचाव उपकरण के काम करते है । ई-कचरे के गलत ढंग से निपटान से न केवल स्वास्थ्य पर बल्कि पर्यावरण पर भी नकारात्मक असर होता है ।
भारतीय ग्रामीण इलाको की अपेक्षा शहरों में १० गुना अधिक कचरा पैदा होता है भारत में प्रति व्यक्ति औसत कचरा २५०-३५० ग्राम तक है । यद्यपि हम बहुत कम कचरा पैदा करते है लेकिन हमारी विशाल जनसंख्या और कचरे के निपटान का उचित प्रबंध ना होने की समस्या से कै से निपटे और स्वच्छता में उच्च् स्तर पर कैसे पंहुचे ये दोनो चिंताए हमारे स्वच्छता अभियान में शामिल करनी होगी । 
हम जानते है कि आधुनिक कचरे का दो तिहाई हिस्सा वही होता है जो किसी वस्तु या खाद्य सामग्री की पैकिंग के रुप में प्रयोग में लाया जाता है । महात्मा गांधी के जन्म से शुरु हुए इस अभियान में गांधी के इस विचार पर ध्यान देना होगा जिसमें उन्होने कहा था -   सुनहरा नियम तो ये है कि जो चीज़लाखों लोगो की नही मिल सकती उसे लेने से हम दृढंतापूर्वक इन्कार कर दें त्याग की यह शक्ति हमें एकाएक नहीं मिल जाएगी पहले तो हमें ऐसी मनोवृति विकसित करनी चाहिए कि हमें उन सुख सुविधाआें का उपयोग नहीं करना है जिनसे लाखों लोग वंचित है और उसके बाद तुरंत ही अपनी मनोवृति के अनुसार हमें शीघ्रता पूर्वक अपना जीवन बदलने में लग जाना चाहिए   । इस प्रकार आवश्यकता कचरें के कम उत्पादन करने अर्थात व्यक्तिगत उपभोग को कम करने की है ।
स्वच्छता अभियान मात्र एक अभियान नही है बल्कि जन आंदोलन है। स्वच्छता का सीधा संबंध पर्यावरण से होता है आज मानव जाति के समक्ष सबसे बड़ी समस्या पर्यावरण संरक्षण की है । जगह-जगह दिखने वाले कचरे के ढेर ने हमारी नदियों, मंदिरों, तीर्थ क्षैत्रों, ग्रामों और शहरों सभी को अस्वच्छ कर दिया है । गंदगी को साफ करने के कार्य को समाज क्षुद्र कार्य मानता रहा है । सफाई करने की ओर निम्नता का दृष्टिकोण रखा जाता है । जो वर्ग आज तक कचरें से लेकर मल-मूत्र तक साफ करते आया है और पीढ़ी दर पीढ़ी उसी वर्ग का इसमें लगे रहना हम सबके लिए लज्जा का विषय होना चाहिए ।
स्वच्छता अभियान में झाडू केवल सफाई का अस्त्र नही है यह सामाजिक विषमता और जाति - पाति पर आधारित उच-नीच को समाप्त् करने का एक बड़ा प्रतीक है। हमारे यहां सभी धर्मोंा में स्वच्छता पर ज़ोर है इसके चलते हमारे व्यक्तिगत जीवन में साफ-सफाई का विशेष स्थान है । लेकिन सार्वजनिक स्थानों सड़के, पार्क, बस स्टेण्ड और रेल्वे स्टेशन आदि को साफ सुथरा रखने की जिम्मेदारी को अपना कर्तव्य मान कर काम करने के लिए बहुत कम लोग आगे आ रहें है। हर व्यक्ति जब तक अपने हिस्से की सफाई पर ध्यान नही देगा तब तक समूचे देश को साफ सुथरा कैसे रखा जा सकता है? पर्यावरण संरक्षण और स्वच्छ भारत अभियान को जन आंदोलन बनाने मेंजन सामान्य की सक्रिय सहभागिता नितांत आवश्यक है । 
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