मंगलवार, 15 अप्रैल 2008

११ कविता

वृक्ष बोलते हैं

प्रेम वल्लभ पुरोहित

`राही' वृक्ष बोेलते हैं

इतिहास रचा है इन्हांने

माँ कहती-कहती थक गयी

कि जन्म से मरण तक का

साथ रहा है

रहता है

मनुष्य से इनका ।

नाता ऐसा जुड़ा है

फिर भी नातेदार

थमाली कुल्हाड़ी से काटता है इन्हें

जन्म से आजीवन तक की सेवा

क्या-क्या कहें

अपने मुख से अपनी बड़ाई

अच्छी लगती नहीं

मृत्यु के दिन भी

घाट तक की यात्रा मेंे साथ रहते हैं

वृक्ष (लकड़िया)

यही नहीं -

पंचतात्विक शरीर को

भस्मकर मुक्ति देते हैं

स्वर्ग देते हैं ये वृक्ष

ऐसा नाता

जीवन मरण तक

साथ निभाता है जो विस्मयकारी है ।

मानव,

धरती माता को नग्न न रहने दो

लहलहाते हरित वृक्षों से करते श्रृंगार

धरती माता का ।***

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