सोमवार, 14 अप्रैल 2008

१० ज्ञान विज्ञान

सूर्य निगल जाएगा पृथ्वी को !
अंतरिक्ष वैज्ञानिकों ने भविष्यवाणी की है कि सूर्य ७ अरब ६० करोड़ वर्ष बाद पृथ्वी को निगल जाएगा । अखबार `डेली मिरर' ने ससेक्स विश्वविद्यालय के अंतरिक्ष वैज्ञानिक डॉ. राबर्ट स्मिथ के हवाले से यह खबर दी है। उनके मुताबिक मानव सभ्यता इससे बच भी सकती है बशर्तेवह पास से गुजर रहे उल्का पिंड को पृथ्वी से हल्के से स्पर्श कराके इसके कक्षीय मार्ग को परावर्तित करा पाए । डॉ. स्मिथ ने कहा कि यह सुनने में भले ही कल्पना लगे लेकिन आने वाली सदियों में संभवत: ऐसी तकनीक भी विकसित हो सकती हैं । इससे पहले डॉ. स्मिथ की टीम का मानना था कि पृथ्वी बच जाएगी, लेकिन ताजा गणनाआे से पता चला है कि सूर्य के बाहरी वातावरण की गुरूत्वाकर्षण शक्ति पृथ्वी एवं अन्य ग्रहों को अपनी ओर खींच रही है । वैज्ञानिकों का यह भी मानना है कि सूर्य के विस्तार से महासागरों में कई परिवर्तन होंगे ।
टहलते हुए होगी बैटरी चार्ज
लगता है कि मोबाइल फोन की बैटरी चार्ज करना अब समस्या नहीं रहेगी। पिछले दिनों खोज हुई पैदल व्यक्ति के घुटनों में लगने वाले एक यंत्र की। नई खोज एक पॉवर शर्ट की है । यह कोई यंत्र नहीं, बल्कि एक खास कपड़े से बनी कमीज है, जो अपने आप में एक पॉवर हाउस है । इसे पहनने वाले को बिना अहसास दिलाए यह इतनी बिजली पैदा कर लेगा जिससे एक एमपी-३ प्लेयर या आईपॉड चल सकेगा या मोबाइल फोन की बैटरी रिचार्ज हो सकेगी । जॉर्जिया इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी के प्रोफेसर झाँग लिन वांग ने रेशा आधारित एक नैनो जनरेटर बनाया है, जो हलचल से पैदा होने वाली ऊर्जा को समेटता है । इसकी जड़ में है जिंक ऑक्साइड की नैनो वायर्स (अतिसूक्ष्म तार) जो मनुष्य के बाल से एक हजार गुना कम पतली होती हैं । इनमें से कुछ मात्रा में बिजली बह सकती है । इन तारों की जोड़ियों से अतिसूक्ष्म ब्रुश बनाए गए। इनमें से एक तार सोने का मुलम्मा चढ़ाया गया ताकि वह बेहतर विद्युत चालक बन जाए । जब हलचल के कारण ये ब्रुश आपस में घिसते हैं तो हल्का विद्युत प्रवाह पैदा होता है । इससे बेटरी चार्ज हो सकती है ।
जहाज, ज्यादा बढ़ाते हैं धरती का बुखार
वैज्ञानिकों का कहना है कि पानी के जहाज सर्वाधिक प्रदूषण फैलाते है । धरती का बुखार बढ़ाने में जहाजों की बड़ी भूमिका है । जहाज कार्बन डायऑक्साइड, नाइट्रस आक्साइड और काला कार्बन भारी मात्रा में उगलते हैं । एक कंटेनर जहाज, दो हजार डीजल ट्रकों जितना प्रदूषण फैलाता है । दुनिया में जितना नाइट्रोजन आक्साइड का उत्सर्जन होता है, उसका तीस प्रतिशत हिस्सा जहाजों से निकलता है । जहाजों से जो काला कार्बन निकलता है, वह हवा को कार्बन डायआक्साइड के मुकाबले सैकड़ों हजारों गुना अधिक गर्म करता है । वैश्विक तापमान वृद्धि में काले कार्बन का योगदान २५ फीसदी है । एक जहाजी बेड़ा हर साल ६० से ९० करोड़ मेट्रिक टन कार्बन डायआक्साइड उगलता है । यह १३ करोड़ कारों के उत्सर्जन के बराबर है ।बारह साल में दूना : एक अनुमान २०२० तक इनसे उत्सर्जन २००२ के स्तर से दुगुना होने की आशंका है और २०३० तक तिगुना हो जाएगा । रपट में जहाजों के प्रदूषण पर अंकुश की कार्ययोजना बनाने पर जोर दिया गया है ।ईपीए से अपील करें : इस दिशा में एक सकारात्मक कदम यह हो सकता है कि पर्यावरण प्रेमी और जैव विविधता केन्द्र पर्यावरण सुरक्षा एजेंसी से अपील करें ।
अब नहीं होगी चहचहाहट गुम
चिड़िया .. अब कभी गुमनामी में नहीं खो सकेगी । दरअसल अब परिंदो की आवाज सुनकर ही उनके होने का पता लगाना अब पहले की अपेक्षा ज्यादा आसान हो गया है । इसके जरिए पक्षी वैज्ञानिक ही नहीं बल्कि आम पक्षी प्रेमी यह आसानी से बता सकता है कि प्रदेश में कितने नए परिंदों ने दस्तक दी है और कितनों ने यहाँ से पलायन किया । यह सब संभव हुआ है `पियु' की मदद से । भारतीय वन प्रबंधन संस्थान ने मध्यभारत में पाए जाने वाले पक्षियों की आवाजों को एक सीडी में कैद कर लिया है । `पियु' नामक इस सीडी में १४० विभिन्न प्रकार के परिंदों की आवाज को सहेजा गया है । इस सीडी में परिंदों की आवाज, उनके चित्र व कॉल स्पेक्ट्रोग्राम के साथ उपलब्ध है । मप्र बर्ड वोकलाइजेशन्स नामक प्रोजेक्ट के लिए पक्षियों की आवाजों का यह अद्भुत संग्रह किया है संस्थान के प्रतापसिंह व सीएस राठौर ने । श्री राठौर के अनुसार पक्षियों की आवाजों की रिकार्डिंग व स्पेक्ट्रोग्राम (आवाज नापने का ग्राफ) का संग्रहण एवीफौना (पक्षियों पर अध्ययन) पर शोध व संरक्षण में काफी मददगार साबित हो रहा है । हाल ही के वर्षो में पक्षियों की नई प्रजातियों की अधिकांश खोजें पक्षी ध्वनि पर आधारित है । उष्णकटिबंधीय वनों में प्राय: पक्षियों को देख पाना संभव नहीं होता है । वनों में उनकी आवाजों से ही उनकी पहचान की जाती है । इन पक्षियों की आवाजों को विभिन्न इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों की मदद से रिकार्ड किया गया है । अब इस संग्रह का उपयोग पक्षियों पर शोध में किया जा रहा है । सीडी में दर्शाए गए पक्षी की आवाज पर क्लिक करने से उसकी आवाज निकलती है, वो भी स्पेक्ट्रोग्राम के साथ । उससे यह पता लगाया जाता है कि पक्षी की आवाज कितने किलो हर्ट्ज की है । इससे पक्षी के बारे में सही पता लगाने में मदद मिलती है । सीडी की मदद से विलुिप्त् की कगार पर खड़ी प्रजातियों को बचाने में सफलता मिल सकेगी ।
सुने जा सकेंगे व्यक्ति के विचार
एक व्यक्ति है एरिक रेम्से । एक कार दुर्घटना के बाद उसे लकवा हो गया। कार दुर्घटना आठ वर्ष पूर्व हुई थी और उसके बाद रेम्से की हालत यह हो गई कि वह सचेत तो है मगर आंखों के अलावा किसी और अंग को हिलाने-डुलाने में असमर्थ है । मगर तंत्रिका वैज्ञानिकों का एक दल उसे इस स्थिति से उबारने की कोशिश में लगा है और उम्मीद है कि जल्दी ही सफलता मिलेगी । यह संभव लगने लगा है कि एरिक रेम्से जो कुछ सोचेगा, उसे एक कम्प्यूटर की मदद से ध्वनि में बदला जा सकेगा । यानी वह कम्प्यूटर के जरिए बोल पाएगा । २००४ में रेम्से के दिमाग में एक बेतार इलेक्ट्रोड लगाया गया था । यह इलेक्ट्रोड दिमाग के उस हिस्से में लगाया गया था जो ध्वनि उत्पादन के लिए जीभ, होंठो वगैरह को संकेत देता है । दरअसल यह ४१ तंत्रिकाआें का एक पुंज है । दिमाग में लगा उक्त इलेक्ट्रोड इन ४१ तंत्रिकाआें द्वारा प्रेषित विद्युत आवेशों को रिकॉर्ड करता है । जब रेम्से कुछ बोलने के बारे में सोचता है तब इस हिस्से द्वारा प्रेषित संकेतों का विश्लेषण एक सॉप्टवेयर की मदद से करके ध्वनियां उत्पन्न की गई । रेम्से को लगा कि वह यही ध्वनियां निकालना चाहता था । अब शोधकर्ता विभिन्न ध्वनियों का विश्लेषण करने में लगे हैं । ताकि रेम्से के विचारों से उत्पन्न संकेतों और ध्वनियों का संबंध जोड़ा जा सके । अभी तक रेम्से ने तीन स्वरों `ओ', `ई' तथा `ऊ' की कल्पना की है और शोधकर्ता इन ध्वनियों से जुड़े विद्युत संकेतों के पैटर्न पहचानने में सफल रहे हैं । शोधकर्ताआें को यकीन है कि जैसे-जैसे विश्लेषण आगे बढ़ेगा, अन्य स्वर और व्यंजनों की ध्वनियां भी उनकी पकड़ में आती जाएंगी । जैसे ही रेम्से के विचारों के संकेतों के आधार पर ध्वनि उत्पन्न होती है, स्वयं रेम्से उसे सुनकर फीडबैक दे सकता है । वैसे तो यह एक व्यक्ति का मामला लगता है मगर hodhakartaaaaen का विचार है कि इससे कुछ ऐसे विकास होंगे जो अन्य लोगों के लिए भी मददगार होंगे। ***

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