सोमवार, 14 अप्रैल 2008

६ वनस्पति जगत

क्या पौधों को भी विटामिन चाहिए ?
डॉ. किशोर पंवार
क्या पौधों को भी विटामिन चाहिए यह सवाल मजेदार है और पूछने वाले प्राणी शास्त्र के एक सेवानिवृत्त प्रोफेसर डॉ. अरविंद गुप्त्े हैं । पहले तो मुझे लगा कि यह भी कोई सवाल है । भला जो पेड़-पौधे पूरी दुनिया के विटामिन के स्त्रोत हैं उन्हें विटामिन की क्या जरूरत है । परंतु थोड़ी छानबीन के बाद पता चला कि मामला आसान नहीं है । जब कभी हम संतुलित भोजन की बात करते हैं तो वह हमेशा जंतुआें, विशेषकर मनुष्यों के संदर्भ में ही होती है। संतुलित भोजन कार्बोहाइड्रेड, प्रोटीन, वसा, सब्जियों एवं फलों का एक संतुलित मिश्रण है । कार्बोहाइड्रेड, प्रोटीन व वसा तो ऊर्जा व शरीर निर्माण की सामग्री के स्त्रोत हैं, वहीं सब्जियों व फलों से हमें मुख्य रूप से विटामिन व खनिज लवण मिलते हैं । संतुलित भोजन का यह नुस्खा सिर्फ इन्सानों के संदर्भ में है । दरअसल पेड़-पौधे अपना भोजन स्वयं बना लेते हैं । अत: उनके संदर्भ में कभी संतुलित भोजन की बात ही नहीं उठती । हां, खेती के मामले में जरूर उन्हें एन.पी.के. अर्थात नाइट्रोजन, फॉस्फोरस और पोटेशियम जैसे तत्व देने की बात होती है । ये फसलों की अच्छी वृद्धि और ज्यादा उत्पादन के लिए जरूरी हैं । कभी-कभी मिट्टी में गंधक या अन्य तत्व सूक्ष्म मात्रा में मिलाने का सुझाव भी दिया जाता है परंतु यह कभी नहीं सुना-पढ़ा और न आज तक किसी ने पूछा कि क्या पौधों को विटामिन की भी जरूरत होती हैं और यदि होती है तो वे कहां से आते हैं? क्या पौधे अपने विटामिन स्वयं बनाते हैं ? क्या हमारे विटामिन और पौधे के विटामिन एक ही हैं ? और पौधों के चयापचय, वृद्धि और विकास में उनकी क्या भूमिका है । खोजबीन करके यह पता चला कि पौधों को भी विटामिन की जरूरत होती है और उनमें भी विटामिन की वही भूमिका है जो हमारे शरीर में होती है । परंतु जिन्हें हम विटामिन कहते हैं पौधों के संदर्भ में उन्हें सह-एन्जाइम कहते हैं ।विटामिन्स क्या व क्यों विटामिन एक लेटिन शब्द है जिसका अर्थ होता है जीवनदायी अमीनो अम्ल । पहले ऐसा माना जाता था कि सभी विटामिन अमीनो अम्ल हैं परंतु यह सच साबित नहीं हुआ । विटामिन्स अपेक्षाकृत छोटे कार्बनिक अणु होते हैं जो सजीवों की वृद्धि और विकास के लिए अत्यंत सूक्ष्म मात्रा में जरूरी होते हैं। उनकी आवश्यकता एन्जाइम-सहायक बनाने में होती है जो हमारा चयापचय ठीक रखकर स्वास्थ्य और शरीरिक क्षमता बनाए रखते हैं । विटामिन दो तरह के होते हें - पानी में घुलनशील (जैसे ए और सी) तथा वसा में घुलनशील (जैसो ए.डी.ई. और के) विटामिन मुख्य भोजन यानी कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन और वसा की तरह ऊर्जा के स्त्रोत नहीं है । इनका काम तो विभिन्न चयापचयी क्रियाआे का नियमन हैं जैसा कि ऊपर बताया गया, ये सह-एन्जाइम की तरह काम करते हैं । भोजन में विटामिन की कमी हो तो हमारे शरीर में विशिष्ट लक्षण पैदा होते हैं । पौधे और विटामिन विटामिनों की खोज १९०६ से लेकर १९३७ तक हुई । ऐसा माना जाता था कि ये अतिरिक्त पदार्थ जंतुआे के लिए जरूरी हैं, पौधों के लिए नहीं । पौधों के लिए भी विटामिन जरूरी हैं, इसका पता सबसे पहले तब चला जब फफूंदोंको कृत्रिम माध्यम में उगाने की कोशिश की गई । होता यह था कि जब तक उनके संवर्धन माध्यम में विटामिन बी नहीं मिलाया जाता, तब तक उनकी सामान्य वृद्धि नहीं होती थी । इसी प्रकार से जड़ों को संवर्धन करने की कोशिशों के दौरान भी विटामिन की भूमिका का पता चला । इन्हीं प्रयोगों के परिणामों से यह सुझाव उभरा कि विटामिन्स को पौधों का वृद्धिकारक पदार्थ मानना चाहिए । संवर्धन माध्यम में विभिन्न लवण, हारमोन एवं विटामिन, अमीनों अम्ल और कार्बोहाइड्रेट होते हैं । यह देखा गया कि कई पौधों की जड़ों को वृद्धि के लिए थायमीन और निकोटिनामाइड या पायरीडॉक्सीन (विटामिन बी ६) की जरूरत होती है । उल्लेखनीय है कि ये दोनों जाने-माने विटामिन हैं । यह पता चला है कि विटामिन पत्तियों में बनते हैं और वहां से वृद्धि करने वाले क्षेत्रों (जैसे जड़ और तनें) में शीर्ष तक पहुंचाए जाते हैं । अधिकांश विटामिन एन्जाइम क्रियाआें में सहायक की भांति कार्य करते हैं । ये कोशिकाआे के अंदर बहुत ही सूक्ष्म मात्रा में पाए जाते हैं । पौधों में भी विटामिन उसी तरह एन्जाइम चालित क्रियाआे में भाग लेते हैं जैसे कि मनुष्य में । इनमें विटामिन बी-१२, बायोटिन, फॉलिक एसिड, पेंटाथेनिक एसिड, विटामिन ए, यूबिक्विनोन ए, यूबिक्विनोन वगैरह प्रमुख हैं । अंतर इतना ही है कि पौधे अपने विटामिन स्वयं बनाते हैं जबकि जंतु विटामिन आपूर्ति के लिए पौधों पर निर्भर हैं । कई उत्प्रेरकों यानी एन्जाइमों को एक गैर-प्रोटीन पदार्थ की जरूरत होती है । कुछ में यह धातुआे जैसे मैग्नीशियम, लौह वगैरह के प्रोटीन के अतिरिक्त कार्बनिक पदार्थ होते हैं जो एन्जाइम से जुड़कर रासायनिक पदार्थो या इलेक्ट्रॉन के लिए वाहक का कार्य करते हैं । उन्हें सह-एन्जाइन कहते हैं । कुछ सह-उत्प्रेरक यानी विटामिन सीधे क्रिया में भाग भी लेते हैं। विटामिन कोशिका के सामान्य कामकाज के आवश्यक अंग हैं । थायमीन पायरोफास्फेट दरअसल कार्बोक्सीलेज एन्जाइम तंत्र का संक्रिय अंग है । निकोटिनामाइड छअऊ और छअऊझ का सहायक है और पेन्टाथेनिक अम्ल सह-एन्जाइम ए का हिस्सा है । विटामिन घ प्रकाश संश्लेषण मेंइलेक्ट्रॉन संवहन श्रृंखला का महत्वपूर्ण हिस्सा है । पौधों में विटामिनों के महत्व का अंदाज एसिटाइल सह-एन्जाइम ए के बनने से लगाया जा सकता है । पायरूवेट का ऑक्सीकरण पायरूवेट डीहायड्रोजिनेस तंत्र द्वारा होता है । यह बहुत से एन्जाइम्स का समूह है । इस क्रिया में छअऊ और ऋअऊ का भी उपयोग होता है । श्वसन क्रिया में कई विटामिन्स की भूमिका होती है । श्वसन का मतलब है ऊर्जा उत्पन्न करना । इस क्रिया के दौरान भोजन का ऑक्सीकरण कोशिका के माइटोकॉण्ड्रिया नामक भाग में होता है । इस क्रिया में कार्बन डाईऑक्साइड और पानी बनता है तथा ढेर सारी ऊर्जा मुक्त होती है । श्वसन क्रिया के क्रेब चक्र के दौरान पायरूविक अम्ल ऑक्सेलोएसिटिक अम्ल से क्रिया करता है । इसमें तीन सह-एन्जाइम (विटामिन) काम आते हैं । इसी प्रकार श्वसन क्रिया के एक अन्य चरण में एक और विटामिन रिबोफ्लेविन की महत्वपूर्ण भूमिका है । प्रकाश संश्लेषण में बीटा कैरोटिन की प्रमुख भूमिका यह है कि यह क्लोरोफिल को हानिकारक ट्रिप्लेट अवस्था में पहुंचने से बचाव करता है । ट्रिप्लेट क्लोरोफिल अणु हानिकारक ऑक्सीजन मूलक का निर्माण करता है । यदि ट्रिप्लेट क्लोरोफिल अणु का हानिकारक प्रभाव देखना हो, तो इसकी थोड़ी सी मात्रा को मनुष्य की त्वचा के नीचे रखकर देखा जा सकता है । ऐसा करके त्वचा पर रोशनी डाली जाए तो कई घातक रसायनों का निर्माण होता है और त्वचा कैंसर की आशंका बढ़ जाती है । बीटा कैरोटिन ट्रिप्लेट क्लोरोफिल को सिंग्लेट क्लोरोफिल में बदल देता है । इस प्रकार से बीटा कैरोटिन प्रकाश संश्लेषण तंत्र को हानि से बचाता है । एक अन्य विटामिन- फॉलिस एसिड - प्रोटीन के अलावा डी.एन.ए. और आर.एन.ए. जैसे महत्वपूर्ण पदार्थो के संश्लेषण में काम आने वाले उत्प्रेरक का हिस्सा है । बायोटिन वसा अम्लों के चयापचय में उपयोगी उत्प्रेरक है । विटामिन सी प्रोटीन और लायसीन अम्लों के हायड्रोक्सीलेशन में मददगार है । एन्जाइम टेट्राहायड्रोफोलेट का सह-एन्जाइम मिथाइल समूह प्रदान करता है जिससे थाइमीन बनता है जो डीएनए अणु के चार क्षारों में से एक हैं । मनुष्यों में यह सह-उत्प्रेरक नहीं पाया जाता जब तक कि भोजन में फॉलिक एसिड नामक विटामिन न हो । विटामिन बी-१ कार्बोहाइड्रेट के आक्सीकरण में, कीटों अम्लों तथा पेन्टोज शर्करा के संश्लेषण और उपापचय के काम आता है और श्वसन में क्रेब चक्र को सुचारू रूप से चलाने में जरूरी है । रिबोफ्लेविन यानी विटामिन बी-२ कोशिकीय श्वसन और वृद्धि के लिए जरूरी हैं । यह सह-एन्जाइम ऋचछ और ऋअऊ का हिस्सा है जो माइट्रोकाण्ड्रिया मे इलेक्ट्रॉन संवहन तथा हाइड्रोजन के स्थानांतरण का कार्य करता है । यह त्वचा और मुंह भी श्लेष्मा झिल्ली को स्वस्थ रखने के लिए भी जरूरी है । नियासीन, निकोटिनिक एसिड, निकोटिनामाइड सह-एन्जाइम छअऊ और छअऊझ के हिस्से हैं जो हाइड्रोजन के ग्राही और दाता के रूप में काम करते हैं जिन्हें डीहायड्रोजिनेस कहते हैं । ये प्रकाश संश्लेषण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।***

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