मंगलवार, 15 अप्रैल 2008

सम्पादकीय

ग्लोबल वार्मिंग और हमारे प्रयास
विश्व के सबसे ठण्डे निवास स्थल अंटार्किटा में बर्फ तेजी से पिघल रही है । पृथ्वी के तापमान में आये इस बदलाव का कारण पिछले कुछ वर्षोंा से अत्यधिक ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन माना जा रहा है । जो सौर ऊर्जा को परावर्तित कर वातावरण को गर्म कर देता है । ग्लोबल वार्मिंग की बढ़ रही इस समस्या से पूरी दुनिया चिंतित है । प्रदूषण और ग्लोबल वार्मिंग को सबसे बड़ा खतरा मानने वाले देश इससे निपटने के लिये स्वयं की जिम्मेदारी नहंी मानकर दूसरे देशों पर डाल रहे हैं । वर्ष २००४ के आंकड़ों के अनुसार विश्व भर में ग्रीन हाउस गैसों में से एक कार्बनडाय आक्साइड का २७ अरब टन उत्सर्जन किया गया , जिसमें से ५.९ अरब टन तो केवल अमेरिका ने ही किया । इसके बाद ४.७ अरब टन का उत्सर्जन कर चीन दूसरे रूस १.७ और जापान १.३ अरब टन पर तीसरे स्थान पर है । भारत भी १.१ अरब टन कार्बन डाई ऑक्साईड ग्लोबल वार्मिक के लिये अहम जिम्मेदार माना गया । इसमें दूसरा पहलू यह भी है कि १९९७ में जिन ३८ औद्योगिक देशों ने ग्लोबल वार्मिंग के निराकरण के लिये क्योटो प्रॉटोकोल पर हस्ताक्षर किये थे उनमें से ५५ प्रतिशत देश ग्रीन हाउस गैसों को वातावरण में ज्यादा मात्रा में उत्सर्जित करने के लिए जिम्मेदार माने गये । सन् २००१ में हुए एक अध्ययन के अनुसार लगातार हो रहे इस वातावरण परिवर्तन के कारण तापमान औसतन ०.६ डिग्री बढ़ता जा रहा है । इसी वजह से आकर्टिंका की बर्फ तेजी से पिघल रही है । इसके साथ ही मुख्य नदियों के ग्लेशियर भी खत्म होते जा रहे हैं । विशेषज्ञ मानते हें कि असन्तुलित वर्षा और चक्रवाती तूफानों की तीव्रता में वृद्धि भी ग्लोबल वार्मिंग का ही परिणाम है । सन् २००७ में संयुक्त राष्ट्र के इंटर गर्व्हमेंट पैनल के अनुसार २१०० तक पृथ्वी की सतह का तापमान बढ़कर ३.२ से ७.२ तक फेरनहाइट हो सकता है । इस रिपोर्ट के अनुसार जलवाष्प, कार्बन डाइ ऑक्साइड, मीथेन, नाइट्रस ऑक्साइड और ओजोन ग्लोबल वार्मिंग के लिये जिम्मेदार है । इनका ६० प्रतिशत उत्सर्जन मानवीय क्रियाआें के कारण होता है । वैज्ञानिकों के अनुसार ग्लोबल वार्मिंग से बचाने के कुछ कृत्रिम उपाय किये जाये तो कुछ हद तक इस पर रोक लगायी जा सकती है । उनके अनुसार ग्लोबल वार्मिंग के कारण बाधितप्रकाश संश्लेषण की क्रिया में इजाफा करने के लिये यदि समुद्र में लौह तत्व की मात्रा कृत्रिम रूप से बढ़ा दी जाये तो इससे समुद्री शैवाल को पोषण मिलेगा साथ ही उनकी उत्पत्ति बढ़ने से प्रकाश संश्लेषण की क्रिया में वृद्धि होगी वैज्ञानिकों का कहना है कि प्रकाश संश्लेषण की क्रिया में पौधे कार्बनडाइ आक्साइड ग्रहण करते हैं और ऑक्सीजन बाहर निकालते हैं । इसलिए ऐसा करने पर काफी हद तक वातावरण की कार्बन डाई आक्साइड को कम किया जा सकता है ।***

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